Well-organized NCERT Class 11 Geography Notes in Hindi and Class 11 Geography Chapter 3 Notes in Hindi अपवाह तंत्र can aid in exam preparation and quick revision.
Geography Class 11 Chapter 3 Notes in Hindi अपवाह तंत्र
निश्चित वाहिकाओं के माध्यम से हो रहे जल प्रवाह को अपवाह कहते हैं। इन वाहिकाओं के जाल को अपवाह तंत्र कहा जाता है। किसी क्षेत्र का अपवाह तंत्र उस क्षेत्र की भूवैज्ञानिक समयावधि, चट्टानों की प्रकृति एवं संरचना, स्थलाकृति, ढाल, प्रवाहित जल की मात्रा और बहाव की अवधि का परिणाम है।
→ जल ग्रहण क्षेत्र : एक नदी विशिष्ट क्षेत्र से अपना जल बहाकर लाती है जिसे जल ग्रहण क्षेत्र के नाम से जाना जाता है।
→ अपवाह द्रोणी : एक नदी एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा अपवाहित क्षेत्र को अपवाह द्रोणी कहा जाता है।
→ जल विभाजक : एक अपवाह द्रोणी को दूसरे से अलग करने वाली सीमा को जल विभाजक या जल संभर कहा जाता है।
→ भारतीय अपवाह तंत्र के समूह : समुद्र में जल विसर्जन के आधार पर भारतीय अपवाह तंत्र को दो समूहों में विभाजित किया जा सकता है। यथा—
- अरब सागर का अपवाह तंत्र
- बंगाल की खाड़ी का अपवाह तंत्र।
→ अपवाह क्षेत्र :
भारत के कुल अपवाह क्षेत्र का लगभग 77 प्रतिशत भाग गंगा, ब्रह्मपुत्र, महानदी, कृष्णा आदि नदियों के अन्तर्गत आता है जबकि 23 प्रतिशत क्षेत्र सिंधु, नर्मदा, तापी; माही व पेरियार नदियों के अन्तर्गत आता है।
→ उद्गम स्त्रोत :
भारत की अनेक नदियों का उद्गम स्रोत हिमालय पर्वत है और वे अपना जल बंगाल की खाड़ी या अरब सागर में विसर्जित करती हैं। प्रायद्वीपीय पठार की बड़ी नदियों का उद्गम स्थल पश्चिमी घाट है तथा ये नदियाँ बंगाल की खाड़ी में जल विसर्जित करती हैं।
→ भारत के अपवाह तंत्र : भारत के प्रमुख अपवाह तंत्र निम्नलिखित हैं-
→ हिमालयी अपवाह :
हिमालयी अपवाह तंत्र भूगर्भिक इतिहास के एक लम्बे दौर में विकसित हुआ है। इसमें मुख्य रूप से गंगा, सिंधु व ब्रह्मपुत्र नदी द्रोणियाँ शामिल हैं। ये बारहमासी नदियाँ हैं। ये नदियाँ गहरे महाखड्डों से गुजरती हैं तथा ‘वी’ आकार की घाटियाँ, क्षिप्रिकाएँ व जल प्रपात बनाती हैं। मैदानी भाग में ये नदियाँ समतल घाटी, गोखुर झील, बाढ़कृत मैदान, गुम्फित वाहिकाएँ तथा डेल्टा आदि स्थलाकृतियों का निर्माण करती हैं।
→ हिमालय पर्वतीय अपवाह तन्त्र का विकास :
हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में नदियों के विकास के बारे में मतभेद हैं। भूवैज्ञानिक मानते हैं कि मायोसीन कल्प में एक विशाल नदी शिवालिक या इण्डो- ब्रह्म हिमालय के सम्पूर्ण अनुदैर्घ्य विस्तार के साथ असम से पंजाब तक प्रवाहित होती थी और अन्त में निचले पंजाब के पास सिंधु की खाड़ी में मिल जाती थी। ऐसा माना जाता है कि कालान्तर में इण्डो- ब्रह्म नदी तीन मुख्य अपवाह तंत्रों में विभाजित हो गई। विशाल नदी का इस तरह विभाजन सम्भवत: प्लीस्टोसीन काल में हिमालय के पश्चिमी भाग व पोटवार पठार के उत्थान के कारण हुआ। यह क्षेत्र सिंधु व गंगा अपवाह तंत्रों के मध्य जल विभाजक बन गया।
→ हिमालयी अपवाह तंत्र की नदियाँ : हिमालयी अपवाह तंत्र में निम्नलिखित नदी तंत्र प्रमुख हैं-
→ सिंधु नदी तंत्र :
यह विश्व के सबसे बड़े नदी द्रोणियों में से एक है जो कि 11 लाख 65 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है। इसका उद्गम तिब्बती क्षेत्र में कैलाश पर्वत श्रेणी में बोखर चू के पास एक हिमनद से होता है। शयोक, गिलगित, जास्कर, हुंजा, नुबरा, शिगार, गास्टिंग व द्रास सिंधु नदी की सहायक नदियाँ हैं। इसके दाहिने तट पर मिलने वाली अन्य मुख्य सहायक नदियाँ खुर्रम, तोची, गोमल, विबोआ और संगर हैं। अन्त में सिंधु नदी कराची के पूर्व में अरब सागर में जाकर मिल जाती है। सिंधु नदी तंत्र के अन्तर्गत झेलम, चिनाब, रावी, व्यास तथा सतलुज नदियाँ आती हैं।
→ गंगा नदी तंत्र :
यह नदी उत्तरकाशी जिले में गोमुख के पास गंगोत्री हिमनद से 3,900 मीटर की ऊँचाई से निकलती है, जिसे भागीरथी के नाम से जाना जाता है। देवप्रयाग में भागीरथी अलकनंदा से मिलती है और इसके बाद गंगा के नाम से जानी जाती है। बायें तट पर मिलने वाली इसकी महत्त्वपूर्ण सहायक नदियाँ रामगंगा, गोमती, घाघरा, गंडक, कोसी व महानन्दा हैं तथा सोन नदी इसके दाहिने किनारे पर मिलने वाली प्रमुख सहायक नदी है। गंगा की प्रमुख सहायक नदियों में यमुना, चम्बल, गंडक, घाघरा, कोसी, रामगंगा, दामोदर, शारदा आदि प्रमुख हैं।
→ ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र :
विश्व की सबसे बड़ी नदियों में से एक ब्रह्मपुत्र नदी का उद्गम कैलाश पर्वत श्रेणी में मानसरोवर झील के पास चेमायुंगडुंग हिमनद से होता है। इसके बायें तट पर इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ दिबांग या सिकांग और लोहित मिलती हैं और इसके बाद यह नदी ब्रह्मपुत्र के नाम से जानी जाती है। इसके बायें तट की प्रमुख सहायक नदियाँ बूढ़ी दिहिंग, धनसरी और कालांग हैं जबकि दाएँ तट पर मिलने वाली प्रमुख सहायक नदियों में सुबनसिरी, कामेग, मानस व संकोश हैं।
→ प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र:
प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र हिमालयी अपवाह तंत्र से पुराना है। पश्चिमी तट के समीप स्थित पश्चिमी घाट बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली प्रायद्वीपीय नदियों और अरब सागर में गिरने वाली छोटी नदियों के बीच जल विभाजक का कार्य करता है। प्रायद्वीप के उत्तरी भाग में निकलने वाली चम्बल, सिंधु, बेतवा, केन व सोन नदियाँ गंगा नदी तंत्र का अंग हैं। प्रायद्वीप का अन्य प्रमुख नदी तंत्र महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी है1
→ प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र का उद्विकास : अति प्राचीनकाल की तीन प्रमुख भूगर्भिक घटनाओं ने वर्तमान समय के प्रायद्वीपीय भारत के अपवाह तंत्र को स्वरूप प्रदान किया है। यथा-
- आरम्भिक टर्शियरी काल के दौरान प्रायद्वीप के पश्चिमी पार्श्व का अवतलन या धँसाव होना।
- हिमालय में होने वाले प्रोत्थान के कारण प्रायद्वीपीय खण्ड के उत्तरी भाग का अवतलन होना।
- प्रायद्वीप खण्ड उत्तर-पश्चिम दिशा से दक्षिण-पूर्व दिशा में झुक जाना।
→ प्रायद्वीपीय नदी तंत्र : प्रायद्वीपीय अपवाह के प्रमुख नदी तंत्र निम्नलिखित हैं-
- महानदी : छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में सिहावा के पास से यह नदी निकलती है।
- गोदावरी : गोदावरी सबसे बड़ा प्रायद्वीपीय नदी तंत्र है। इसे दक्षिण की गंगा के नाम से जाना जाता है। यह महाराष्ट्र में नासिक जिले से निकलती है और बंगाल की खाड़ी में जल विसर्जित करती है।
- कृष्णा : कृष्णा पूर्व दिशा में प्रवाहित होने वाली दूसरी बड़ी प्रायद्वीपीय नदी है जो कि सह्याद्रि में महाबलेश्वर के निकट से निकलती है।
- कावेरी : कावेरी नदी कर्नाटक के कोगाडु जिले में ब्रह्मगिरी पहाड़ियों से निकलती है।
- नर्मदा : यह नदी अमरकंटक पठार के पश्चिमी पार्श्व से लगभग 1057 मीटर की ऊँचाई से निकलती
- तापी : तापी पश्चिम दिशा में प्रवाहित होने वाली महत्त्वपूर्ण नदी है। यह मध्य प्रदेश में बेतूल जिले में मुलताई से निकलती है।
- लूनी : अरावली के पश्चिम में लूनी राजस्थान का सबसे बड़ा नदी तंत्र है। यह पुष्कर के समीप दो धाराओं के रूप में उत्पन्न होती है जो कि गोविन्दगढ़ के पास आपस में मिल जाती हैं।
→ पश्चिम की तरफ प्रवाहित होने वाली छोटी नदियाँ:
अरब सागर की तरफ प्रवाहित होने वाली नदियों का जल मार्ग छोटा है। भद्रा नदी राजकोट जिले के अनियाली गाँव के पास से निकलती है। ढाढर नदी पंचमहल जिले के घंटार गाँव से निकलती है। नासिक जिले में त्रिंबक पहाड़ियों में 670 मीटर की ऊँचाई पर वैतरणा नदी निकलती है। शरावती पश्चिम की तरफ प्रवाहित होने वाली कर्नाटक की अन्य महत्त्वपूर्ण नदी है। मांडवी और जुआरी गोवा की महत्त्वपूर्ण नदियाँ हैं। पेरियार केरल की दूसरी सबसे बड़ी नदी है। इस राज्य की अन्य उल्लेखनीय नदी पोबा है। पूर्व की तरफ बहने वाली छोटी नदियाँ – प्रायद्वीप में बहुत बड़ी संख्या में नदियाँ अपनी सहायक नदियों के साथ पूर्व की तरफ प्रवाहित होती हैं। स्वर्ण रेखा, वैतरणी, ब्राह्मणी, वामसाधरा, पेंनर, पालार और वैगाई महत्त्वपूर्ण नदियाँ हैं।
→ नदी बहाव प्रवृत्ति :
एक नदी के चैनल में वर्ष पर्यन्त जल प्रवाह के प्रारूप को नदी बहाव प्रवृत्ति के नाम से जाना जाता है। उत्तर भारत की हिमालय से निकलने वाली नदियाँ बारहमासी हैं क्योंकि ये अपना जल बर्फ पिघलने तथा वर्षा होने से प्राप्त करती हैं। दक्षिणी भारत की नदियों के बहाव की प्रवृत्ति वर्षा द्वारा नियंत्रित होती है। जल विसर्जन नदी में समयानुसार जल प्रवाह के आयतन का माप है। इसे क्यूसेक्स या क्यूमैक्स के नाम से जाना जाता है।
→ नदी जल उपयोग की सीमा :
भारत की नदियाँ प्रतिवर्ष जल की विशाल मात्रा का वहन करती हैं लेकिन समय व स्थान की दृष्टि से इसका वितरण समान नहीं है। बारहमासी नदियाँ वर्षभर जल प्रवाहित करती हैं। वर्षा ऋतु में अधिकांश जल बाढ़ के रूप में व्यर्थ ही प्रवाहित हो जाता है। इसी प्रकार देश के एक भाग में बाढ़ आती है जबकि दूसरे भाग में सूखा पड़ता है। नदी जल उपयोग की निम्नलिखित समस्याएँ होती हैं-
- पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध न होना
- नदी जल प्रदूषण
- नदी जल में गाद
- ऋतु वन जल का असमान प्रवाह
- राज्यों के मध्य नदी जल विवाद
- मध्य धारा की तरफ बस्तियों के विस्तार के कारण नदी वाहिकाओं का सिकुड़ना।
→ भौगोलिक शब्दावली
- अपवाह : निश्चित वाहिकाओं के माध्यम से हो रहे जल प्रवाह को अपवाह कहते हैं।
- अपवाह तंत्र : निश्चित वाहिकाओं के जाल को अपवाह तंत्र कहते हैं।
- वृक्षाकार प्रतिरूप : जो अपवाह प्रतिरूप पेड़ की शाखाओं के अनुरूप होता है।
- अरीय प्रतिरूप : जब नदियाँ किसी पर्वत से निकलकर सभी दिशाओं में प्रवाहित होती हैं तो इसे अरीय प्रतिरूप के नाम से जाना जाता है।
- जालीनुमा अपवाह प्रतिरूप : जब मुख्य नदियाँ एक-दूसरे के समानान्तर प्रवाहित होती हों तथा सहायक नदियाँ उनसे समकोण पर मिलती हों तो ऐसे प्रतिरूप को जालीनुमा प्रतिरूप कहते हैं।
- अभिकेन्द्री प्रतिरूप : जब सभी दिशाओं से नदियाँ बहकर किसी झील या गर्त में विसर्जित होती हैं तो ऐसे अपवाह प्रतिरूप को अभिकेन्द्री प्रतिरूप कहते हैं।
- जल ग्रहण क्षेत्र : एक नदी का विशिष्ट क्षेत्र से अपना जल बहाकर लाना।
- अपवाह द्रोणी : एक नदी एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा अपवाहित होना।
- जल विभाजक : एक अपवाह द्रोणी को दूसरे से अलग करने वाली सीमा।
- जल संभर- छोटी नदियों व नालों द्वारा अपवाहित क्षेत्र।