Well-organized Class 11 Geography Notes in Hindi and Class 11 Geography Chapter 10 Notes in Hindi वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ can aid in exam preparation and quick revision.
Geography Class 11 Chapter 10 Notes in Hindi वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ
→ वायुमण्डलीय दाब:
माध्य समुद्रतल से वायुमण्डल की अन्तिम सीमा तक इकाई क्षेत्रफल के वायु-स्तम्भ के भार को वायुमण्डलीय दाब कहते हैं। वायु दाब को मापने की इकाई मिलीबार है। गुरुत्वाकर्षण के कारण धरातल के निकट वायु सघन होती है और इसी कारण वायुदाब अधिक होता है। वायुदाब को मापने के लिए पारद वायुदाबमापी अथवा निद्रव बैरोमीटर का प्रयोग किया जाता है।
→ वायुदाब में ऊर्ध्वाधर भिन्नता:
वायुमण्डल के निचले भाग में वायुदाब ऊँचाई के साथ तीव्रता से कम होता है। यह ह्रास – दर प्रति 10 मीटर की ऊँचाई पर 1 मिलीबार होती है। ऊर्ध्वाधर दाब प्रवणता क्षैतिज दाब प्रवणता की तुलना में अधिक होती है। लेकिन इसके विपरीत दिशा में कार्यरत गुरुत्वाकर्षण बल से यह सन्तुलित हो जाती है।
→ वायुदाब का क्षैतिज वितरण:
वायुदाब के क्षैतिज वितरण का अध्ययन समान अन्तराल पर खींची गई समदाब रेखाओं के द्वारा किया जाता है। समदाब रेखाएँ वे रेखाएँ हैं जो कि समुद्रतल से एकसमान वायुदाब वाले स्थानों को मिलाती हैं।
→ समुद्रतल पर वायुदाब का विश्व वितरण:
विषुवत वृत्त के निकट वायुदाब कम होता है और इसे विषुवतीय निम्न अवदाब क्षेत्र कहा जाता है। 30° उत्तरी व 30° दक्षिणी अक्षांशों के साथ उच्चदाब क्षेत्र पाए जाते हैं, जिनको उपोष्ण उच्च वायुदाब क्षेत्र कहा जाता है। पुनः ध्रुवों की ओर 60° उत्तरी व 60° दक्षिणी अक्षांशों पर निम्न दाब पेटियाँ हैं जिनको अधोध्रुवीय निम्न दाब पट्टियाँ कहते हैं । ध्रुवों के निकट वायुदाब अधिक होता है और इसे ध्रुवीय उच्च वायुदाब पट्टी कहते हैं। ये वायुदाब पट्टियाँ स्थाई नहीं हैं।
→ पवनों की दिशा व वेग को प्रभावित करने वाले बल:
वायुमण्डलीय दाब में भिन्नता के कारण वायु गतिमान होती है। इस क्षैतिज गतिज वायु को पवन कहते हैं। पृथ्वी के धरातल पर क्षैतिज पवनें तीन संयुक्त प्रभावों – दाब प्रवणता प्रभाव, घर्षण बल तथा कोरिऑलिस बल, का परिणाम होती हैं।
→ दाब प्रवणता बल:
वायुमण्डलीय दाब भिन्नता एक बल उत्पन्न करता है। दूरी के सन्दर्भ में दाब परिवर्तन की दर दाब प्रवणता है। जहाँ समदाब रेखाएँ पास-पास हों वहाँ दाब प्रवणता अधिक व समदाब रेखाओं के दूर-दूर होने से दाब प्रवणता कम होती है।
→ घर्षण बल: यह पवनों की गति को प्रभावित करता है। धरातल पर घर्षण अधिक तथा समुद्रतल पर घर्षण न्यूनतम होता है।
→ कोरिऑलिस बल:
पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूर्णन ध्रुवीय पवनों की दिशा को प्रभावित करता है। घूर्णन द्वारा लगने वाले बल को कोरिऑलिस बल कहा जाता है। इस बल के प्रभाव से पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी मूल दिशा से दाहिनी तरफ व दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं तरफ विक्षेपित हो जाती हैं। कोरिऑलिस बल दाब प्रवणता के समकोण पर कार्य करता है।
→ वायुदाब व पवनें:
पवनों का वेग व उनकी दिशा, पवनों को उत्पन्न करने वाले बलों का परिणाम है। जब समदाब रेखाएँ सीधी हों और घर्षण का प्रभाव न हो तो दाब प्रवणता बल कोरिऑलिस बल से सन्तुलित हो जाता है जिसके फलस्वरूप पवनें समदाब रेखाओं के समानान्तर बहती हैं। ये पवनें भू-विक्षेपी पवनों के नाम से जानी जाती हैं। निम्न दाब क्षेत्र के चारों तरफ पवनों का परिक्रमण चक्रवाती परिसंचरण तथा उच्च वायुदाब क्षेत्र के चारों तरफ परिक्रमण प्रति चक्रवाती परिसंचरण कहलाता है।
→ वायुमण्डल का सामान्य परिसंचरण:
भूमण्डलीय पवनों का प्रारूप मुख्य रूप से निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है
- वायुमण्डलीय ताप में अक्षांशीय भिन्नता,
- वायुदाब पट्टियों की उपस्थिति,
- वायुदाब पट्टियों का सौर किरणों के साथ विस्थापन,
- महासागरों व महाद्वीपों का वितरण,
- पृथ्वी का घूर्णन। वायुमण्डलीय पवनों के प्रवाह प्रारूप को वायुमण्डलीय सामान्य परिसंचरण भी कहा जाता है।
यह वायुमण्डलीय परिसंचरण महासागरीय जल को भी गतिमान करता है जो कि पृथ्वी की जलवायु को प्रभावित करता है। उच्च सूर्यातप व निम्न वायुदाब होने से अन्तर उष्णकटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र पर वायु संवहन धाराओं के रूप में ऊपर उठती है।
→ मौसमी पवनें:
पवनों के प्रवाह के प्रारूप में विभिन्न मौसमों में बदलाव आता है। यह बदलाव अत्यधिक तापन, पवन व वायुदाब पट्टियों के विस्थापन आदि के कारण होता है। ऐसे विस्थापन का सबसे अधिक स्पष्ट प्रभाव विशेष रूप से दक्षिण-पूर्व एशिया में मानसून पवनों के बदलाव में देखा जा सकता है।
स्थानीय पवनें : भूतल के गर्म व ठण्डे होने से भिन्नता तथा दैनिक व वार्षिक चक्रों के विकास से अनेक स्थानीय व क्षेत्रीय पवनें प्रवाहित होती हैं।
→ स्थल व समुद्र समीर :
दिन के समय स्थल भाग समुद्र की अपेक्षा अधिक गर्म हो जाते हैं। अतः स्थल पर हवाएँ ऊपर उठती हैं और निम्न दाब क्षेत्र बनता है जबकि समुद्र अपेक्षाकृत ठण्डे रहते हैं और उन पर उच्च वायुदाब बना रहता है। इससे समुद्र से स्थल की तरफ दाब प्रवणता उत्पन्न होती है और पवनें समुद्र से स्थल की तरफ समुद्र समीर के रूप में प्रवाहित होती हैं। रात्रि के समय इसके एकदम विपरीत प्रक्रिया होती है। स्थल समुद्र की अपेक्षा जल्दी ठण्डा होता है। दाब – प्रवणता स्थल से समुद्र की तरफ होने पर स्थल समीर प्रवाहित होती है।
→ पर्वत व घाटी पवनें:
दिन के समय पर्वतीय प्रदेशों में ढाल गर्म हो जाते हैं और वायु ढाल के साथ-साथ ऊपर उठती है और इस स्थान को भरने के लिए वायु घाटी से बहती है। इन पवनों को घाटी समीर कहते हैं। रात्रि के समय पर्वतीय ढाल ठण्डे हो जाते हैं और सघन वायु घाटी में नीचे उतरती है जिसे पर्वतीय समीर कहते हैं। उच्च पठारों व हिमक्षेत्रों से घाटी में बहने वाली ठण्डी वायु को अवरोही पवनें कहते हैं।
→ वायु-राशियाँ :
जब वायु किसी समांगी क्षेत्र पर पर्याप्त लम्बे समय तक रहती है तो यह उस क्षेत्र के गुणों को धारण कर लेती है। तापमान तथा आर्द्रता सम्बन्धी विशिष्ट गुणों वाली यह वायु वायु-राशि कहलाती है। वायु – राशियों के उद्गम क्षेत्र के आधार पाँच प्रकार की वायु- -राशियाँ होती हैं। यथा-
- उष्णकटिबन्धीय महासागरीय वायु – राशि,
- उष्णकटिबन्धीय महाद्वीपीय वायु – राशि,
- ध्रुवीय महासागरीय वायु – राशि,
- ध्रुवीय महाद्वीपीय वायु – राशि,
- महाद्वीपीय आर्कटिक वायु – राशि।
→ वाताग्र – जब दो भिन्न प्रकार की वायु :
राशियाँ मिलती हैं तो उनके मध्य सीमा क्षेत्र को वाताग्र कहते हैं । वाताग्रों के बनने की प्रक्रिया को वाताग्र जनन कहते हैं । वाताग्र चार प्रकार के होते हैं, यथा-
- शीत वाताग्र
- उष्ण वाताग्र
- अचर वाताग्र
- अधिविष्ट वाताग्र।
→ बहिरुष्ण कटिबन्धीय चक्रवात:
वे चक्रवातीय वायु प्रणालियाँ, जो कि उष्णकटिबन्ध से दूर मध्य व उच्च अक्षांशों में विकसित होती हैं, उन्हें बहिरुष्ण या शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात कहते हैं। बहिरुष्ण कटिबन्धीय चक्रवात ध्रुवीय वाताग्र के साथ-साथ बनते हैं।
→ उष्णकटिबन्धीय चक्रवात:
उष्णकटिबन्धीय चक्रवात आक्रामक तूफान हैं जिनकी उत्पत्ति उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों के महासागरों पर होती है तथा ये तटीय क्षेत्रों की तरफ गतिमान होते हैं। ये चक्रवात आक्रामक पवनों के कारण विस्तृत विनाश, अत्यधिक वर्षा और तूफान लाते हैं।
→ तड़ितझंझा व टोरनेडो :
स्थानीय तूफान तड़ित झंझा तथा टोरनेडो अल्प समय के लिए रहते हैं। ये अपेक्षाकृत कम क्षेत्रफल तक सीमित होते हैं लेकिन आक्रामक होते हैं। तड़ितझंझा उष्ण आर्द्र दिनों में प्रबल संवहन के कारण उत्पन्न होते हैं। तड़ित झंझा एक पूर्ण विकसित कपासी वर्षी मेघ है जो कि गरज व बिजली उत्पन्न करते हैं।
→ भौगोलिक शब्दावली:
- मिलीबार : वायुदाब को मापने की इकाई।
- वायुदाब मापी : वायुदाब को मापने का यन्त्र।
- समदाब रेखाएँ : समुद्रतल से एकसमान वायुदाब वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखाएँ।
- कोरिऑलिस बल : पृथ्वी के घूर्णन द्वारा लगने वाला बल।
- दाब प्रवणता : दूरी के सन्दर्भ में दाब परिवर्तन की दर।
- एलनिनो : पीरू के तट पर गर्म धाराओं की उपस्थिति।
- वायुराशि : तापमान तथा आर्द्रता सम्बन्धी विशिष्ट गुणों वाली वायु।
- वाताग्र : दो भिन्न प्रकार की वायु – राशियों के मध्य सीमाक्षेत्र।