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CBSE Class 12 Hindi Elective वाचन
1. भाषण
भाषण, भाषा के विभिन्न कौशलों की एक मिश्रित और परिष्कृत अभिव्यक्ति है। भाषण – कौशल की प्रक्रिया में संरचनाओं का सुव्यवस्थित चयन, शब्दों का द्रुतगति से प्रवाहपूर्ण प्रयोग तथा एक निश्चित क्रम में उनको जोड़ना शामिल हैं। इसमें शब्द- समूह और वाक्य – साँचों का क्रमबद्ध प्रयोग होता है। भाषण कौशल को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है – पहला उच्चारण तथा दूसरा अभिव्यक्ति।
उच्चारण के अंतर्गत समस्त ध्वनि-व्यवस्था के प्रायोगिक रूप का समावेश रहता है।
अभिव्यक्ति के अंतर्गत व्याकरणिक, शब्द-समूह-संबंधी और अर्थ – संबंधी व्यवस्थाओं का समानांतर प्रयोग एक निश्चित लय में होता है।
विद्यार्थियों को चाहिए कि अपने भाषण को तैयार करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें :
- भाषण ऐसा हो कि श्रोता उसमें रुचि ले सकें।
- भाषण देते समय सदैव आरोह-अवरोह का ध्यान रखा जाना चाहिए।
- भाषण विषयानुकूल तथा भावानुकूल होना चाहिए।
- भाषण देते समय क्रियात्मक अभिनय का भी समावेश करना चाहिए।
- भाषण में हास्य-व्यंग्य का पुट होना भी आवश्यक होता है, जिससे श्रोतागण उसको रुचिपूर्वक सुन सकें।
- विषय का प्रस्तुतीकरण रोचक व नवीन ढंग से होना चाहिए अर्थात उसमें कुछ नयापन होना चाहिए।
- भाषण में कठिन शब्दों का प्रयोग नहीं होना चाहिए, बल्कि आम बोलचाल (हिंदुस्तानी) की भाषा का प्रयोग होना चाहिए, ताकि लोग उसे आसानी से समझ सकें।
- वक्ता को विभिन्न प्रकार के नवीन शब्दों और भाषा के अन्य नवीन तथ्यों का सहज रूप से अभ्यास होना चाहिए।
- वक्ता चित्रात्मक तथा प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग करके भाषण को और भी अधिक प्रभावी बना सकता है।
- यदि वक्ता अपने भाषण में विषय से संबंधित कोई विशिष्ट उक्ति या प्रसिद्ध कवि की कविताओं को जोड़ लेता है, तो उसके भाषण में चार चाँद लग जाते हैं।
- भाषण देते समय वक्ता को शब्दों के उच्चारण पर विशेष ध्यान देना चाहिए, वरना अर्थ का अनर्थ भी हो सकता है।
- छोटे वाक्यों का प्रयोग करना वक्ता के लिए अधिक प्रभावशाली हो सकता है।
- भाषण को तैयार करके यदि वक्ता उसे टेप करके पुनः सुनता है, तो वह स्वयं अपनी गलतियों को पहचानकर उन्हें ठीक कर सकता है।
- भाषण जोश तथा उत्साह से भरा होना चाहिए।
- भाषण में संबोधन का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। श्रोतागण को किया गया संबोधन अत्यंत सहज व आत्मीय होना चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रहे कि केवल सभापति या निर्णायकगण ही वहाँ उपस्थित नहीं हैं।
- भाषण की शुरुआत पर वक्ता को विशेष ध्यान देना चाहिए। जितनी अधिक प्रभावशाली शुरुआत होगी, उतनी ही अधिक श्रोताओं की प्रशंसा व एकाग्रता वक्ता को मिलेगी।
- भाषण का अंत कभी भी अधूरा नहीं करना चाहिए अर्थात भाषण में पूर्णता होनी चाहिए। श्रोताओं को यह न लगे कि आप अपनी बात को स्पष्ट करने में असफल रहे हैं।
- भाषण में परिपक्वता अवश्य होनी चाहिए अर्थात उसमें विषय से हटकर कुछ भी न कहा गया हो तथा कम-से-कम शब्दों में अपनी बात को स्पष्ट किया गया हो।
- वक्ता की आवाज़ में श्रोताओं को बाँधकर रखने की शक्ति होनी चाहिए।
- भाषण मौलिक होना चाहिए तथा उसे अधिक यथार्थ और विश्वसनीय बनाने के लिए उसमें आवश्यक लक्षणों तथ्यों व उदाहरणों का यथोचित समावेश किया जाना चाहिए।
भाषण का उदाहरण :
युवाओं में बढ़ती नशाखोरी : समस्या और समाधान
मनुष्य द्वारा मादक द्रव्यों का सेवन करना कोई नई बात नहीं है। उसकी यह प्रवृत्ति हज़ारों वर्ष पुरानी है। इसका प्रमाण यह है कि प्राचीन भारतीय ग्रंथों में ‘सोम’ और ‘सुरा’ का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि हर्ष उल्लास एवं विशेष अवसरों पर इसका प्रयोग किया जाता था। वेद-पुराण भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि इसका प्रयोग समय-समय पर लोगों द्वारा किया जाता था, जो उल्लासवर्धन करने के साथ-साथ झगड़े का भी कारण बन जाता था। आज युवा वर्ग भी इसके सेवन से स्वयं को नहीं बचा पाया है।
मानव ने ज्यों-ज्यों सभ्यता की ओर कदम बढ़ाए, वह नित नई खोजें करता गया। इनमें विज्ञान का विशेष योगदान था। उसके आविष्कारों ने जहाँ मनुष्य को अनेक उपयोगी वस्तुओं से अवगत कराया, वहीं कुछ हानिप्रद वस्तुओं की खोज भी उससे जाने-अनजाने में हो गई। उसने धीरे-धीरे इनका प्रयोग करना सीख लिया। शुरू में ऐसी वस्तुओं का प्रयोग दर्द निवारण में, उल्लास – वृद्धि में तथा विशेष अवसरों पर ही किया जाता था, पर आज बहुत सारे लोग इसका सेवन नियमित रूप से करने लगे हैं। युवा इसके सेवन को अपनी शान में वृद्धि समझते हैं।
नशीली वस्तुएँ मीठे जहर के समान होती हैं, जो व्यक्ति को धीरे-धीरे मौत के द्वार की ओर ले जाती हैं। इनका दुष्प्रभाव थोड़े समय के बाद दिखने लगता है, पर तब तक उस दिशा में बढ़े कदमों को वापस खींच पाना अत्यंत कठिन हो जाता है। आज युवा वर्ग सर्वप्रथम चोरी-छिपे, पार्टियों में या मित्रों के साथ मादक द्रव्यों का सेवन करता है, किंतु धीरे-धीरे वह पूरी तरह से उसकी गिरफ़्त में आ जाता है।
भारत जैसे विकासशील देशों में यह समस्या एकदम नई नहीं है, पर पिछले एक-दो दशकों में यह समस्या अत्यंत तेज़ी से बढ़ी है। कुछ समय पूर्व तक जिन मादक द्रव्यों का सेवन कुछ ही लोग करते थे तथा अधिकांश लोग उनसे दूर रहते थे, उन्हीं मादक द्रव्यों का सेवन युवा और यहाँ तक कि स्कूल जाने वाले कुछ विद्यार्थी भी करने लगे हैं। जो युवा इनका सेवन लंबे समय से कर रहे हैं, वे इनके बिना नहीं रह पाते।
ऐसे पदार्थों का सेवन करना उनकी आदत बन चुकी है। पाश्चात्य संस्कृति अपनाते अपनाते भारतीय युवक तेज़ी से इन्हें भी अपनाते जा रहे हैं। दुख की बात है कि अब तो युवतियाँ भी इनकी चपेट में आने लगी हैं। इनका असर महानगरीय युवाओं पर अधिक हो रहा है। पहले यह आदत संपन्न वर्ग तक ही सीमित होती थी, पर आज यह हर वर्ग में फैल रही है। ग्रामीण-शहरी, अमीर-गरीब, शिक्षित-अशिक्षित, युवक-युवती तथा बेरोज़गार वर्ग के व्यक्ति इनके सेवन के आदी हो रहे हैं, पर युवा वर्ग इनका अधिक शिकार हो रहा है।
आज मादक द्रव्यों को ‘ड्रग्स’ के नाम से जाना जाता है। इसकी परिधि में मादक द्रव्य और दवाइयाँ दोनों ही आ जाती हैं। पहले तो इनका प्रयोग सूँघने, खाने या पीने के माध्यम से किया जाता था, पर आज इसे इन माध्यमों के अलावा इंजेक्शन के माध्यम से भी लिया जाता है। ये पदार्थ मनुष्य की जैविक क्रिया-प्रणाली को प्रभावित करते हैं। दुर्भाग्य से युवा वर्ग इन सभी का प्रयोग करने लगा है।
मादक द्रव्यों को मुख्यतः दो वर्गों में बाँटा जा सकता है :
- कम हानिकर मादक द्रव्य
- अधिक हानिकर मादक द्रव्य।
सामान्य या कम हानिकर मादक द्रव्यों में मुख्य रूप से ‘निकोटीन’ और ‘कैफीन’ को लिया जा सकता है। ‘निकोटीन’ तंबाकू में पाया जाता है, जिसका सेवन तंबाकू, पान-मसाले, गुटखा और सिगरेट के माध्यम से किया जाता है। इनका असर स्वास्थ्य पर धीरे-धीरे पड़ता है। अतः इनका प्रयोग अधिक तथा दीर्घकाल तक करने से स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा कुछ मादक द्रव्य पोस्ते के पौधे से भी तैयार किए जाते हैं, जिनमें अफ़ीम मॉरफ़ीन, हेरोइन, स्मैक आदि हैं।
इनका प्रयोग लोग नींद लाने, दर्द भगाने, सुखानुभूति आदि के लिए करते हैं। इनके प्रयोग से कुछ दिन में ही युवा वर्ग इसका आदी हो जाता है। इनमें हेरोइन सबसे खतरनाक पदार्थ है, जिसके सेवन से व्यक्ति स्वयं को सुखद स्थिति में तो महसूस करता है, किंतु इसका असर खत्म होने पर वह अजीब-सी बेचैनी और पीड़ा की अनुभूति करता है। वह बार-बार इसका सेवन करना चाहता है।
दूसरे वर्ग में शराब और अल्कोहल जैसे मादक द्रव्यों को रखा जा सकता है, जिनके सेवन से अधिक हानि होने की संभावना रहती है। शराब पीने वाले व्यक्ति की दिनचर्या ही इसी पर आधारित होकर रह जाती है। एक बात तो तय है कि मादक द्रव्य या ड्रग्स जो भी हैं, उनका दीर्घकालीन प्रयोग गंभीर समस्या एवं मौत का कारण बन सकता है। इतना होने पर भी इनका सेवन करने वालों की कमी नहीं है, उल्टे इनकी संख्या बढ़ती ही जा रही है। इनके व्यसनी लोगों की चाल, बात करने का ढंग, उनकी जीवन-शैली आदि देखकर इन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है।
युवा वर्ग को यह जान लेना चाहिए कि शौक और मौज़ के लिए अपनाए गए इन मादक द्रव्यों को लगातार लेने की आदत बनने के पहले ही छोड़ देना चाहिए। इसके लिए उन्हें स्वजागरूकता लानी होगी। मादक द्रव्यों का सेवन व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और विश्व सभी के लिए हानिप्रद है। अतः इनसे दूर रहने में ही युवा वर्ग और सभी की भलाई है।
2. कार्यक्रम – प्रस्तुति
विद्यालय के मंच से या दूसरे सांस्कृतिक कार्यक्रम में मंच से कार्यक्रम प्रस्तुत करना एक कला है। एक अच्छा उद्घोषक अपनी प्रभावी आवाज़ और शैली से कार्यक्रम की प्रस्तुति में जान डाल देता है और दर्शकों – श्रोताओं को कार्यक्रम से बाँधे रखता है। जिस प्रकार भोजन के स्वाद से बढ़कर उसे प्रस्तुत करने का अंदाज़ खाने वालों को आकर्षित करता है, उसी प्रकार उद्घोषक की कला कार्यक्रम की प्रभावात्मकता को चार चाँद लगा देती है। एक अच्छा उद्घोषक बनने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाना आवश्यक है :
- उद्घोषक को मंच पर आते समय शालीन पहनावे और पूरी तैयारी के साथ आना चाहिए।
- कार्यक्रम की सूची और समय-सारणी उसके पास होनी चाहिए। विभिन्न कार्यक्रमों को प्रस्तुत करने वाली टीमों या सदनों और उनकी प्रस्तुतियों का लेखा-जोखा क्रम से लिखा हुआ उद्घोषक के पास होना चाहिए।
- उद्घोषणा संक्षिप्त और सटीक होनी चाहिए। ऐसा करते हुए उद्घोषक किसी शेर या काव्य पंक्तियों का प्रयोग भी कर सकता है।
- पढ़कर उद्घोषणा करना उतना प्रभावशाली नहीं होता। बोलते समय शब्द यदि मन से निकलें, तो उन शब्दों की प्रभावात्मकता और बढ़ जाती है। विशेष रूप से यदि शेर या काव्य पंक्तियाँ कंठस्थ हों।
- उद्घोषक चूँकि कार्यक्रमों के बीच के समय के खालीपन को भर रहा होता है, इसलिए उसे अधिक समय नहीं लेना चाहिए। नाटक या समूह प्रस्तुतियों के लिए समय कुछ अधिक लगता है, उसके लिए उद्घोषक को तैयार रहना चाहिए।
- प्रतिभागियों को प्रोत्साहित करने के लिए श्रोताओं / दर्शकों की ओर से उनकी प्रशंसास्वरूप तालियाँ बजाया जाना आवश्यक है। ये तालियाँ दर्शकगण / श्रोतागण उद्घोषक की घोषणा से उत्साहित होकर बजाएँ, न कि उद्घोषक के तालियाँ बजाने के अनुरोध पर।
- उद्घोषणा होने के उपरांत कार्यक्रम की प्रस्तुति में देरी नहीं होनी चाहिए। उद्घोषक घोषणा कुछ इस अंदाज़ में करे कि घोषणा के समाप्त होते ही घोषित कार्यक्रम शुरू हो जाए।
- प्रस्तुति के समापन पर भी यदि उद्घोषक संक्षिप्त टिप्पणी कर दे, तो श्रेयस्कर होगा।
- उद्घोषक की आवाज़ में ऐसा जादू हो कि श्रोताओं / दर्शकों का साधारणीकरण हो जाए। कार्यक्रम के अनुसार ही उद्घोषक का स्वर जोशीला, करुण, शांत या हास्य रस से सराबोर होना चाहिए। भाषा पर पकड़ होना एक उद्घोषक के लिए अनिवार्य है।
कार्यक्रम प्रस्तुति का उदाहरण :
दयानंद आदर्श उच्चतर विद्यालय, चंडीगढ़ के पुरस्कार वितरण समारोह पर प्रस्तुत किए जाने वाले कार्यक्रमों की रूपरेखा दी जा रही है। इस कार्यक्रम की उद्घोषणा कीजिए।
दिनांक 20 जुलाई, 20xx
मुख्य अतिथि का आगमन : सायं 4.30 बजे।
मुख्य अतिथि का अभिनंदन : प्राचार्य व स्टाफ़ द्वारा।
दीप प्रज्वलन : मुख्य अतिथि श्री रमेंद्र शर्मा द्वारा।
सरस्वती वंदना : नवीं कक्षा की छात्राओं द्वारा।
समूह गीत (देश-प्रेम) : संगीत सभा के सदस्यों द्वारा।
आज का रावण (लघु नाटिका) : हरेंद्र व 12 वीं कक्षा के अन्य छात्रों द्वारा।
ढोला ढोल मंजीरा बाजे रे : शैलजा व 11 वीं कक्षा की अन्य छात्राओं द्वारा।
(राजस्थानी लोकनृत्य)
वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुति : प्राचार्य द्वारा।
पुरस्कार वितरण : मुख्य अतिथि द्वारा (प्राचार्य व उपप्राचार्य की सहायता से)
आशीर्वचन एवं टिप्पणी : मुख्य अतिथि द्वारा।
कव्वाली (ए जाने-वतन तुझको) : राजेंद्र एवं साथियों द्वारा।
धन्यवाद ज्ञापन : उपप्राचार्य द्वारा।
राष्ट्रगान : विद्यालय की छात्राओं द्वारा।
जलपान हेतु आमंत्रण : उद्घोषक द्वारा (पुरस्कार विजेताओं, अभिभावकों, अतिथियों व स्टाफ सदस्यों को)
प्रस्तुति :
दयानंद आदर्श उच्चतर विद्यालय के मंच से मैं इस सभागार में पधारे सभी अतिथियों एवं विद्यार्थियों का हार्दिक अभिनंदन करता हूँ। आज के इस कार्यक्रम की शोभा बढ़ाने के लिए कुछ ही क्षणों में चंडीगढ़ नगर निगम के महापौर श्री रमेंद्र शर्मा सपरिवार पधारने वाले हैं। आपसे अनुरोध है कि जैसे ही मुख्य अतिथि सभागार में उपस्थित हों, जोरदार तालियों से उनका अभिनंदन करें।
ठीक 4.30 बजे हैं। हमारे आज के मुख्य अतिथि चंडीगढ़ के महापौर श्री रमेंद्र शर्मा मुख्य द्वार से प्राचार्य और स्टाफ़ के सदस्यों के साथ प्रविष्ट हो रहे हैं।
हम इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि का हार्दिक स्वागत करते हैं। अब मैं माननीय प्राचार्य जी से अनुरोध करूँगा कि वे मुख्य अतिथि का माल्यार्पण द्वारा स्वागत करें।
औपचारिक स्वागत के उपरांत मैं मुख्य अतिथि से गुज़ारिश करूँगा कि वे परंपरा के अनुसार दीप प्रज्वलित करें और हमें आज के कार्यक्रम को आगे बढ़ाने की आज्ञा दें।
जब-जब किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का आगाज़ होता है, स्वर्ग की देवी, संगीत की देवी माँ सरस्वती को याद किया जाता है। आज के कार्यक्रम में भी इसी रस्म को निभाते हुए नवीं कक्षा की छात्राएँ पेश कर रही हैं – सरस्वती वंदना – जिसके बोल हैं- ‘ वर दे वीणावादिनी वर दे।’
बड़ी ही खूबसूरत प्रस्तुति थी, इस सरस्वती वंदना की। कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए अब इसे रँगते हैं, देश भक्ति के रंग में-
“अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को,
मिलता एक सहारा।”
सज्जनो! सोने की चिड़िया कहलाने वाले हमारे इस देश में अनेक भिन्नताएँ हैं, फिर भी हम रंग-बिरंगे मोतियों की माला की तरह एक तार से बँधे हैं और तार है – भारतीयता की। इसी एकता को उजागर करता है, हमारा यह समूह गीत, जिसे प्रस्तुत कर रहे हैं- विद्यालय की संगीत सभा के छात्र।
देश – भक्ति के रस से ओतप्रोत इस समूह गीत के बाद अब आनंद लीजिए, एक लघु नाटिका, का जिसका शीर्षक है- ‘आज का रावण’।
मित्रो, त्रेता युग में एक ही रावण था, फिर भी इतने उत्पात हुए; कलियुग तो असंख्य रावणों से भरा पड़ा है। ऐसे ही रावण की पोल खोलती है, हमारी लघु नाटिका। इसे प्रस्तुत कर रहे है- हरेंद्र व 12वीं कक्षा के उनके साथी। समाज की कड़वी सच्चाई से रूबरू होने के बाद आइए, फिर से चलते हैं, संगीत की दुनिया में और आनंद लेते हैं, राजस्थान के लोक नृत्य व संगीत का। सावन के आगमन पर गाए जाने वाले इस लोक गीत के बोल हैं- ‘ढोला ढोल मंजीरा बाजे रे।’
गीत के साथ मनमोहक परिधानों में नृत्य प्रस्तुत कर रही हैं- शैलजा और 11वीं कक्षा की छात्राएँ।
इस मनमोहक प्रस्तुति के बाद अब मैं प्राचार्य महोदय से प्रार्थना करूँगा कि मंच पर पधारें और विद्यालय की वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए विद्यालय की प्रगति से अवगत कराएँ।
विद्यालय की जिन उपलब्धियों का ज़िक्र प्राचार्य महोदय ने किया है। अब समय है, उन उपलब्धियों को हासिल करने वाले छात्र-छात्राओं को शाबाशी देने का और पुरस्कारों से नवाजने का। इसके लिए मैं मंच पर आमंत्रित कर रहा हूँ, आज के कार्यक्रम के सभापति महोदय को। साथ ही प्रार्थना करता हूँ, प्राचार्य जी से कि मुख्य अतिथि को मंच तक लेकर आएँ।
पुरस्कार वितरण समारोह के बाद अब मैं अनुरोध करूँगा, आज के मुख्य अतिथि से कि हमारे विद्यार्थी साथियों को संबोधित करें और आशीर्वाद स्वरूप चंद शब्द कहें।
अपने विद्यालय प्रशासन और सभी विद्यार्थियों की ओर से मैं मुख्य अतिथि महोदय का तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ। उनका प्रोत्साहन इन नन्हे कलाकारों को और भी आत्मविश्वासी बनाएगा। आपके सुझावों और परिश्रम करने के संदेश को हम सब अपने जीवन में उतारने का प्रयास करेंगे, ऐसा विश्वास मैं आपको दिलाता हूँ।
हाज़रीन! अब प्रस्तुत कर रहे हैं, एक जोशीली और देश-प्रेम से भरपूर कव्वाली, जिसे बड़ी अदा और नज़ाकत से प्रस्तुत कर रहे हैं- राजेंद्र और उनके साथी।
अंग-प्रत्यंग फड़का देने वाली इस जोशीली कव्वाली के बाद मैं विद्यालय के उपप्राचार्य श्री रामचंद्र जी से अनुरोध करता हूँ कि मुख्य अतिथि महोदय व अन्य सम्मानित अतिथियों का यथायोग्य धन्यवाद करें।
धन्यवाद-ज्ञापन के बाद सभी से अनुरोध है कि राष्ट्रगान में भाग लेने के लिए सम्मानस्वरूप खड़े हो जाएँ।
इसी के साथ आज की यह सांस्कृतिक संध्या समाप्त होती है। सभी अतिथियों, अभिभावकों, पुरस्कार विजेताओं व स्टाफ सदस्यों को हम जलपान के लिए विद्यालय के प्रांगण में सादर आमंत्रित करते हैं, धन्यवाद !
3. सस्वर कविता पाठ
निम्नलिखित कविता का भावपूर्ण ढंग से स्वर में पाठ करें –
अब न गहरी नींद में तुम सो सकोगे,
गीत गाकर मैं जगाने आ रहा हूँ।
अतल अस्ताचल तुम्हें जाने न दूँगा,
अरुण उदयाचल सजाने आ रहा हूँ।।
कल्पना में आज तक उड़ते रहे तुम,
साधना से सिहरकर मुड़ते रहे तुम।
अब तुम्हें आकाश में उड़ने न दूँगा,
आज धरती पर बसाने आ रहा हूँ।।
सुख नहीं यह, नींद में सपने सँजोना,
दुख नहीं यह, शीश पर गुरु भार ढोना।
शूल तुम जिसको समझते थे अभी तक,
फूल मैं उसको बनाने आ रहा हूँ।।
देखकर मँझधार को घबरा न जाना,
हाथ ले पतवार को घबरा न जाना
मैं किनारे पर तुम्हें थकने न दूँगा,
पार मैं तुमको लगाने आ रहा हूँ।
तोड़ दो मन में कसी सब शृंखलाएँ
तोड़ दो मन में बसी संकीर्णताएँ।
बिंदु बनकर मैं तुम्हें ढलने न दूँगा
सिंधु बन तुमको उठाने आ रहा हूँ।।
तुम उठो, धरती उठे, नभ शिर उठाए,
तुम चलो गति में नई गति झनझनाए।
विपथ होकर मैं तुम्हें मुड़ने न दूँगा।
प्रगति के पथ पर बढ़ाने आ रहा हूँ।।
सोहन लाल दूविवेदी
4. संवाद
संवाद वार्तालाप या बातचीत की तुलना में अधिक औपचारिक होता है। संवाद सामान्यतः किसी विषय विशेष को लेकर और प्रश्नोत्तर शैली में होता है। संवाद में संबोधन का बड़ा महत्व होता है। उचित संबोधन के बिना संवाद प्रभावी नहीं होता।
संवाद के उदाहरण :
1. रेल यात्रा के दौरान दो यात्रियों के वार्तालाप को संवाद के रूप में लिखिए। संवाद का विषय है- भ्रष्टाचार।
- रामशरण – नमस्कार, भाई साहब!
- बसेसर – नमस्कार, भाई साहब! आप कहाँ तक जा रहे हैं?
- रामशरण – मैं दिल्ली जा रहा हूँ, अपनी बिटिया को उसके ससुराल से लाने।
- बसेसर – अच्छा! मैं भी दिल्ली जा रहा हूँ। वित्त मंत्रालय में अपने पोते के साक्षात्कार के लिए। नौकरी मिलने की तो कोई उम्मीद नहीं, पर चलो देखते हैं।
- रामशरण – हाँ, भ्रष्टाचार का तो चारों ओर बोलबाला है। आज ही देखिए! एजेंट ने टिकट दिलवाने के बदले दो सौ रुपये झाड़ लिए।
- बसेसर – नीचे से ऊपर तक यह घुन सारे देश को खाए जा रहा है। हमारा राष्ट्रीय चरित्र ही कलंकित हो गया है।
- रामशरण – अजी! नीचे वालों को तो बाद में पूछें, नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों का पेट तो भरे। जो भी सरकार में आता है, बस! लूटने में जुट जाता है।
- बसेसर – ठीक कहते हो, भाई! इतनी तरक्की की है देश ने, पर इन ठगों ने उस तरक्की का लाभ आम जनता तक पहुँचने ही नहीं दिया।
- रामशरण – भाई साहब! आँखें तरस गई ईमानदार अधिकारियों और जवाहर-पटेल जैसे नेताओं को देखने के लिए।
- बसेसर – आज के नेता तो एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं, सारे चोर-चकार।
- रामशरण – फिर भी, भाई साहब! कोई शक्ति तो है, जो इस देश की बागडोर सँभाले हुए है।
- बसेसर – हाँ! भगवान ही मालिक है, इन चोरों-भ्रष्टाचारियों के देश का। यहाँ लोकतंत्र नहीं, तानाशाह चाहिए, जो इन दलालों को सीधा कर दे।
- रामशरण – अजी, इतना निराश होने की भी ज़रूरत नहीं। मैं तो अभी भी नई पीढ़ी से बहुत आशा रखता हूँ। इसी विश्वास से आज आप भी जाइए। भगवान आपके पोते को यह नौकरी ज़रूर दिलवाएँगे।
- बसेसर – अच्छा, भाई साहब! भगवान आपकी वाणी को सत्य साबित करें। लो हम दिल्ली पहुँच भी गए।
- रामशरण – अच्छा, भाई साहब! आपके साथ अच्छा समय व्यतीत हुआ।
- बसेसर – सो तो है, साहब! ईश्वर ने चाहा तो फिर मिलेंगे। अच्छा, नमस्कार!
- रामशरण – नमस्कार!
2. हर्ष और अब्दुल, दो मित्रों में बातचीत हो रही है। बातचीत एन०सी०सी० कैंप में जाने के लिए की जा रही तैयारियों के बारे में है। बातचीत की कल्पना कीजिए।
- हर्ष – अब्दुल, कैंप की तैयारी कैसी चल रही है? तुमने वर्दी प्रेस करवा ली, क्या?
- अब्दुल – हाँ, यार! वर्दी भी तैयार है और बेल्ट-कैप भी। अब तो बस जाने का इंतज़ार है।
- हर्ष – हाँ, यार! बड़ा मज़ा आएगा। सुनते हैं कैंप में ही फ़ायरिंग और ग्लाइडिंग का अभ्यास करवाया जाएगा।
- अब्दुल – फिर तो मज़ा दोगुना हो जाएगा। मेरी दिली इच्छा थी कि मैं ग्लाइडर में बैठकर पक्षी की तरह उड़ँ।
- हर्ष – जब उड़ेंगे तब देखेंगे, अभी ख्याली पुलाव मत पकाओ।
- अब्दुल – अच्छा, हर्ष! वहाँ ठहरने का क्या प्रबंध है? क्या हमें सोने के लिए बिस्तर मिलेंगे?
- हर्ष – हाँ-हाँ, क्यों नहीं! गद्दे बिछे होंगे, तकिये मिलेंगे! अरे भाई! एन०सी॰सी० का कैंप फ़ौजियों की तरह रहना सिखाता है, न कि घर के ऐशो-आराम मिलते हैं।
- अब्दुल – सो तो मैं समझता हूँ। कितने दिन तक हमें कैंप में रहना होगा?
- हर्ष – दस दिन का कैंप है। इसमें से दो दिन तो यात्रा के हैं। आठ दिन हमें भी देश के रखवाले फ़ौजियों की तरह जीवन जीने का अनुभव मिलेगा।
- अब्दुल – मैं तो बड़ा रोमांचित हूँ, हर्ष! इंतज़ार कर रहा हूँ मंगलवार का, जब हम कैंप के लिए फौज़ी ट्रक में रवाना होंगे।
- हर्ष – अच्छा, भाई! अब आराम कर लो और मुझे भी सोने दो। शुभ रात्रि!
- अब्दुल – शुभ रात्रि!
3. देश में बढ़ रही आतंकवादी घटनाओं पर हुई बातचीत को संवाद के रूप में प्रस्तुत कीजिए। बातचीत दो पड़ोसियों धर्मचंद और सुरेश में हो रही है।
- धर्मचंद – नमस्कार, सुरेश जी! कैसे हैं? अखबार पढ़ा जा रहा है?
- सुरेश – हाँ, साहब! अखबार पढ़कर तो रोंगटे खड़े हो गए। कश्मीर के आतंकवादी दिल्ली, गुजरात और अब मुंबई भी पहुँच गए हैं।
- धर्मचंद – हाँ जी, डेढ़ सौ आदमी मारे गए हैं और तीन सौ से ज़्यादा घायल हुए हैं। सारी मुंबई सहम गई है।
- सुरेश – अजी, मुंबई क्या? सारा देश आतंक के साए में जी रहा है, जाने क्या होगा? कब खत्म होगा, यह सिलसिला खून-खराबे का?
- धर्मचंद – सरकार पता नहीं सो रही होती है। आतंकवादी जब चाहते हैं, जहाँ चाहते हैं, हमला करते हैं और निर्दोषों का खून बहा डालते हैं।
- सुरेश – हमारी सुरक्षा और जासूसी एजेंसियाँ क्यों इतनी निकम्मी हैं, जिन्हें आतंकवादियों के मनसूूों का अता-पता ही नहीं होता।
- धर्मचंद – जब तक सभी राज्यों की पुलिस और एजेंसियाँ मिलकर काम नहीं करतीं, आतंकवादी घटनाओं पर रोक लगा पाना मुश्किल है।
- सुरेश – आपकी यह बात तो सही है। जब तक राजनीतिक इच्छा-शक्ति और पुलिस बलों का संयुक्त अभियान नहीं होगा, इन आतंकवादी घटनाओं को रोका नहीं जा सकता।
5. परिचर्चा
परिचर्चा भी बातचीत का एक रूप है। जिस बातचीत में कई लोग भाग लेते हैं, उसे ‘परिचर्चा’ कहा जाता है। परिचर्चा किसी विषय को लेकर होती है और परिचर्चा में विषय के सभी पक्षों पर खुलकर विचार-विमर्श होता है। विषय को लेकर सभी प्रतिभागी अपना-अपना पक्ष और विचार रखते हैं। परिचर्चा औपचारिक भी हो सकती है और अनौपचारिक भी। अनौपचारिक परिचर्चा में अकसर तर्क-वितर्क हो जाता है और परिचर्चा दिशाहीन हो जाती है। औपचारिक परिचर्चा में एक सभापति होता है। सभी सदस्य बारी-बारी से अपना पक्ष रखते हैं। ऐसे में बाकी प्रतिभागी अपनी जिज्ञासाओं को संतुष्ट करने के लिए प्रश्न भी पूछते हैं, जिनका उत्तर वक्ता देता है। अंत में परिचर्चा का सूत्रधार कुछ सर्वस्वीकार्य निष्कर्ष बताकर परिचर्चा की समाप्ति की घोषणा करता है। सफल परिचर्चा के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाना आवश्यक है :
- परिचर्चा में भाग लेने वाले सभी लोगों को अपना-अपना पक्ष रखना चाहिए।
- एक-दूसरे की बात को काटा नहीं जाना चाहिए।
- परिचर्चा सहज और मैत्रीपूर्ण माहौल में होनी चाहिए।
- परिचर्चा में विषयांतर होने से बचना चाहिए।
- संयोजक या सूत्रधार का कर्तव्य है कि वह उग्र और निंदा करने वाले प्रतिभागियों को अपने व्यवहार से शांत करने का प्रयास करें।
- परिचर्चा के दौरान शालीनता, संयम और सहज माहौल बना रहना चाहिए।
- एक-दूसरे का विरोध प्रकट न करते हुए विनम्रतापूर्वक असहमति व्यक्त करना एक अच्छे प्रतिभागी की निशानी है।
- केवल विरोध करना ही परिचर्चा में भाग लेने का लक्ष्य नहीं होता। मन को जँचने वाली बातों को स्वीकारा जाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
- परिचर्चा में आमंत्रित विद्वान से प्रश्न करते समय स्वर विनम्र और प्रश्न सार्थक होने चाहिए। प्रश्न विद्वान द्वारा दिए गए वक्तव्य से संबद्ध होने चाहिए।
परिचर्चा का उदाहरण :
क० ख० ग० विद्यालय में एक परिचर्चा आयोजित की गई है, जिसका विषय है- ‘क्या ट्यूशन पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए।’ बहुत सारे बच्चों ने विषय के पक्ष और विपक्ष में अपने तर्क प्रस्तुत किए। श्री शैलेंद्र प्रभाकर ने ट्यूशन पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाने की बात कही। उनका विचार है कि ट्यूशन पढ़ाने वाले अध्यापकों के खिलाफ़ सख्त कार्यवाही की जानी चाहिए। परिचर्चा में भाग लेते हुए इस विषय को अपने दृष्टिकोण से आगे बढ़ाइए।
हरीश – आदरणीय सभापति जी, मेरा मानना है कि शैलेंद्र प्रभाकर जी का सुझाव आंशिक रूप से सही है। जहाँ तक ट्यूशन का सवाल है, इसके लिए अभिभावक, विद्यार्थी और शिक्षक तीनों ही समान रूप से दोषी हैं। अध्यापक जब कक्षा में अपने कर्तव्य का निर्वाह न करते हुए बच्चों को नहीं पढ़ाता और सारा ध्यान ट्यूशन वाले बच्चों की तरफ़ लगाता है, तो अध्यापक दोषी है।
जहाँ अभिभावक या विद्यार्थी घर की मुर्गी दाल बराबर समझते हुए दूसरे अध्यापकों को ज़्यादा महत्व देते हैं और उनसे ट्यूशन पढ़कर स्वयं को सफलता के द्वार पर पहुँचा महसूस करते हैं, वहाँ कक्षा – अध्यापक पर दोषारोपण करना अन्याय होगा। सभापति जी, ट्यूशन की दुकानें तभी चलती हैं, जब खरीददार यानी विद्यार्थी और अभिभावक दौड़े चले जाते हैं। मेरा मानना है कि कुछ विशेषज्ञ ऐसे हैं, जो स्कूलों-कॉलेजों में नहीं पढ़ाते, बल्कि अपने कोचिंग संस्थान खोलकर बैठे हैं। यदि अभिभावक और विद्यार्थी उनकी विशेषता का लाभ उठाना चाहते हैं, तो क्या हर्ज़ है ?
प्रभात कुमार – आप सभी ने इस गंभीर समस्या पर अपने-अपने विचार रखे। सभी का मानना है कि ट्यूशन समाज की एक बुराई है। खासतौर पर तब, जब अध्यापक अपने कक्षा – कर्म यानी शिक्षण को छोड़कर धन-पिपासु बन जाता है, तो ट्यूशन एक कोढ़ है। शिक्षक का कर्म बड़ा महान है। उसे धन कमाने की अंधी दौड़ से बचना चाहिए और उन गरीब बच्चों के बारे में भी सोचना चाहिए, जो ट्यूशन की भारी-भरकम रकम नहीं चुका सकते। समाज को भी इस महामारी से बचना होगा। अभिभावकों और बच्चों को अपने अध्यापकों की क्षमता पर विश्वास करना सीखना होगा। जैसा कि हरीश ने कहा, जब तक अभिभावक बच्चों को ट्यूशन पढ़ने भेजते रहेंगे, ट्यूशन की दुकानें चलती रहेंगी। अतः सभी पक्षों के प्रयासों से ही विद्यार्थी ट्यूशन के इस चंगुल से बच सकेंगे और उनमें मौलिक चिंतन तथा अभ्यास से सीखने की ललक पैदा होगी।
6. आशुभाषण
आशुभाषण का अभिप्राय है- तत्काल भाषण। भाषण में विषय पहले ही निर्धारित होता है। अत: तोते की तरह विषय को रटकर भाषण दिया जा सकता है, किंतु बोलने वाले के कौशल की वास्तविक परीक्षा आशुभाषण के समय होती है। सामान्यतः आशुभाषण का विषय भाषण देने से तुरंत पहले दिया जाता है। मूल प्रतिभा ही आशुभाषण देने वालों की प्रभावात्मकता को बचाए रख सकती है। आशुभाषणकर्ता में जिन दो गुणों की सर्वाधिक आवश्यकता रहती है, वे हैं- आत्म-विश्वास व विषय को जीवन के विभिन्न संदर्भों से जोड़ना। मंच पर खड़े-खड़े व्यक्ति को अति सीमित समय में क्या-क्या सूझता है, उसी से आशुभाषण कला की परख होती है। पूर्व-अर्जित ज्ञान और तत्काल सोचने की योग्यता इस भाषण कला में काफी महत्वपूर्ण है। आशुभाषण की रूपरेखा अंतर्मन में ही बोलते-बोलते सुसंबद्ध और संयोजित रूप से प्रस्तुत कर पाने की क्षमता बोलने वाले को और भी उत्साही बनाती है और श्रोताओं को ठगा सा छोड़ जाती है। आशुभाषण में सामान्यतः विषयों को कागज़ की पर्चियों पर लिखकर एक डिब्बे या मर्तबान में डालकर मंच के पास रखा जाता है। वक्ता बारी-बारी आते हैं, उस डिब्बे में से एक पर्ची निकालते हैं, पढ़ते हैं और भाषण देना शुरू कर देते हैं। धाराप्रवाह बोलना, सार्थक बोलना, विषय से संबद्ध बातें कहना एक अच्छे आशुभाषणकर्ता के गुण हैं। आशुभाषण को व्यंग्यात्मक और चित्रात्मक शैली में भी प्रस्तुत किया जा सकता है: जैसे –
आपकी कक्षा में हिंदी अध्यापक ने आशुभाषण प्रतियोगिता आयोजित की है। आपकी बारी आने पर आपको ‘हमारे, ट्रैफ़िक नियम’ विषय बोलने के लिए मिलता है। अपनी प्रस्तुति दीजिए।
उत्तर :
माननीय अध्यक्ष जी, निर्णायकमंडल और साथियो !
आज की इस प्रतियोगिता में मुझे जो विषय मिला है, उसका शीर्षक है- हमारे ट्रैफ़िक नियम। सरकार हमारी देश हमारा, राज हमारा, तो ट्रैफ़िक नियम भी हमारे ही हैं। लोकतंत्र है, भाई! सभी को स्वतंत्रता है- मनचाहा करने की, मनचाहा बोलने की। अरे भई ! गाय-भैंसें जब मनमर्जी से सड़कों पर चल सकती हैं, बीचोंबीच बैठ सकती हैं, तो हम लोकतंत्र के आधार – स्तंभ भला बायीं या दायीं ओर क्यों नहीं चल सकते। हेलमेट पहनने से हेयर स्टाइल खराब होता है। वैयक्तिक स्वतंत्रता को धक्का लगता है। लाल बत्ती को फाँदने का रोमांच कुछ और ही है। तेज़ गति से कारें दौड़ाने का मज़ा हर देश का नागरिक नहीं लूट सकता। शराब के नशे में गाड़ी फुटपाथ पर लेटे कीड़े-मकोड़े (गरीबों) पर चढ़ भी गई, तो क्या ? कोर्ट, पुलिस, क्या नहीं बिकता। आराम से छूट जाएँगे। मित्रो, ट्रैफिक नियमों का पालन आप चाहें, तो करें, चाहें तो नहीं करें, क्योंकि आप सब लोकतांत्रिक देश के नागरिक जो ठहरे। कोई मरे तो आपकी बला से, कोई घायल हो, तो उसकी किस्मत।
धन्यवाद!
इस प्रकार के व्यंग्यात्मक आशुभाषण श्रोताओं व निर्णायकों को प्रभावित करते हैं।
आशुभाषण की एक विधा चित्रात्मक प्रस्तुति है। किसी व्यक्ति विशेष का शब्द – चित्र खींचना भी आशुभाषण का विषय है; जैसे-
आपका नाम सुरेंद्र कुमार है। आशुभाषण प्रतियोगिता में आपको जो विषय मिला है, वह है- हमारा नौकर – रामप्रसाद। रामप्रसाद का नाम आते ही नज़र दौड़ जाती है, 45-46 वर्ष के मुस्कराते व्यक्तित्व की ओर ! सफ़ेद चाँदी से बालों,
शंख श्वेत दाँतों, घनी रौबदार मूँछों और सोने के दिल वाले रामप्रसाद को मैं माँ की मौत के बाद से ठीक से जानता हूँ। रामप्रसाद नौकर नहीं, हमारे घर आँगन का सदस्य है। कोई भी काम उसकी सलाह के बिना नहीं होता। मौका शादी का हो या जन्मदिन का, रामप्रसाद काका के हाथों की अँगुलियाँ चूमने को जी चाहता है। खाना बनाते हैं, तो पता नहीं क्या डालते हैं, भोजन में। काका का मेरे प्रति विशेष आकर्षण है। मुझे माँ की मृत्यु के बाद किसी ने सँभाला है, तो वे हैं- रामप्रसाद काका। सच! रामप्रसाद काका के बिना जीवन की कल्पना करना हमारे घर में तो बेमानी है। हे ईश्वर ! मेरे घर ! मेरे रामप्रसाद काका को सलामत रखना।
हमारे देश में धन्यवाद ! आशुभाषण में बोलने का समय अकसर 1-2 मिनट का ही होता है। अतः ज़्यादा औपचारिकताओं में पड़ने की अपेक्षा सीधे विषय पर आना श्रेयस्कर होता है। अटकना, दायें-बायें देखना तथा बार-बार शब्दों की पुनरावृत्ति से बचना चाहिए। जैसे- हमारे देश में आदि। इस प्रकार के हाव-भाव का श्रोताओं और निर्णायकमंडल पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। आशुभाषणकर्ता को भाषण कला तो आती ही हो, उसमें आत्म-विश्वास और किसी भी विषय पर धारा – प्रवाह बोलने की क्षमता भी होनी चाहिए। इस प्रतिभा का विकास करना आशुभाषण का लक्ष्य है। विषय ऐसे हों, जो यांत्रिक या दुरूह न हों। उनमें चुटीलापन हो या कुछ कहने के लिए तुरंत सूझे। आशुभाषण व्यक्तित्व के विकास का एक उत्कृष्ट माध्यम है।
7. अतिथि का स्वागत करना
सामाजिकता की पहली पहचान है, विभिन्न अवसरों पर्वों पर आए हुए अतिथियों का स्वागत करना। कहा जाता है कि 56 व्यंजनों से भी जो बात नहीं बनती, वह शब्दों से बन जाती है। अतिथि का स्वागत करते हुए हाव-भाव, मुख – मुद्रा और शब्दों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए।
अतिथि – सत्कार के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु:
- मुस्कराहट और विनम्रता अतिथि को भाव-विभोर कर देती हैं।
- अतिथियों को संबोधित करते समय उसकी आयु और अवस्था का ध्यान रखा जाना चाहिए।
- हमउम्र लोगों से मिलते समय हाथ मिलाना या गले मिलना उचित है।
- वृद्धों को प्रणाम करना, झुककर नमस्कार करना या चरणस्पर्श करना उचित अभिवादन है।
- महिलाओं को नमस्कार करके ‘स्वागत’ शब्द कहना उचित है; जैसे- ‘आइए, स्वागत है’, ‘आपसे मिलकर बहुत प्रसन्नता हुई’, ‘मैं धन्य हो गया’, ‘हार्दिक अभिनंदन है’, ‘पधारिए’ – जैसे शब्दों का प्रयोग अकसर अतिथियों के स्वागत के लिए किया जाता है।
- घर में आए सभी अतिथियों का स्वागत किया जाना चाहिए, न कि मुख्य अतिथि का ही।
अतिथि सत्कार के उदाहरण :
विद्यालय में आयोजित एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में आप एक उद्घोषक का कार्य – भार सँभाले हुए हैं। मुख्य अतिथि और अन्य अतिथियों का स्वागत कीजिए।
स्वागत – हिंदी दिवस के पावन अवसर पर आयोजित इस वाद-विवाद प्रतियोगिता में पधारे आज के मुख्य अतिथि श्री महेंद्र प्रताप जी का मैं इस मंच से हार्दिक अभिनंदन करता हूँ। हम आभारी हैं, शिक्षक-अभिभावक संघ के सभी पदाधिकारियों के, जिन्होंने उपस्थित होकर हमारे कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई है। आप सभी दर्शकों/श्रोताओं और विद्यार्थियों को भी इस कार्यक्रम में आकर प्रतिभागियों का उत्साह बढ़ाने के लिए धन्यवाद देता हूँ।
शिक्षा – निदेशक आपके विद्यालय में पधारे हैं। आप स्वागत समिति के सदस्य हैं। विद्यालय प्रांगण में मुख्य अतिथि का स्वागत कीजिए।
स्वागत – मनोहर (माल्यार्पण करते हुए विनम्रता से) – प्रणाम महोदय !, आपका हार्दिक स्वागत करते हैं। आपसे पहली बार मिलकर हम बच्चों को बड़ा गर्व महसूस हो रहा है। आइए, कार्यक्रम का उद्घाटन कीजिए।
आपके दादा-दादी गाँव से शहर आए हैं, उनका उचित स्वागत कीजिए।
स्वागत – (पाँवों को छूकर धूलि माथे से लगाते हुए) दादा जी प्रणाम ! दादी जी प्रणाम! आप अचानक आ पहुँचे ! खबर कर दी होती, तो पिता जी आपको बस स्टैंड से लिवा लाते। आइए, आराम से हाथ-मुँह धो लीजिए, मैं आपके लिए पानी लाता हूँ। आपका अभिन्न मित्र शहर से आपके घर आया है, उसका उचित स्वागत कीजिए।
स्वागत – अरे मनोहर ! कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा ! तुम कब आए? अरे, अंदर आओ, मेरे यार तुम्हारे आने से तो मेरा मूड ठीक हो गया। हाथ-मुँह धो लो, पहले खाना खाएँगे, फिर खूब बातें करेंगे।
आपके नए घर के ‘गृह प्रवेश समारोह’ के अवसर पर आपके अध्यापक पधारे हैं। उनका यथायोग्य स्वागत कीजिए। स्वागत – महेश- आइए, गुरुदेव ! बहुत – बहुत स्वागत है, आपका। आपने मेरी लाज रख ली, गुरु जी। मैं धन्य हो गया आपके पधारने से। आइए गुरु जी। मेरे पिता जी भी आपका बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं।
विश्व कप क्रिकेट में उपविजेता रही भारतीय टीम के दो खिलाड़ियों को आपकी संस्था ‘आगाज़’ सम्मानित कर रही है। संस्था के महासचिव के रूप में उन खिलाड़ियों का स्वागत कीजिए।
स्वागत – ‘आगाज़’ के मंच से भारतीय क्रिकेट के दो उभरते सितारे धवन और अजिंक्य रहाणे का हम हार्दिक अभिनंदन करते हैं। विश्व कप में अपने अद्भुत प्रदर्शन से इन दोनों नौजवानों ने देश और इस शहर का नाम विश्व में रोशन किया है। आज इन्हें सम्मानित करते हुए हमारी संस्था अपने-आप को गौरवान्वित महसूस कर रही है।
8. अतिथि का परिचय लेना-देना
अतिथि का परिचय औपचारिक या अनौपचारिक रूप से लिया जा सकता है। अतिथि का परिचय लेते हुए अतिथि के संबंध में समस्त जानकारी ले लेनी चाहिए। अवसर को ध्यान में रखते हुए उनके चरित्र के किसी विशेष पहलू पर बल देते हुए उनका परिचय दूसरों से करवाया जाना चाहिए। परिचय देते हुए सुनने वालों को ऐसा न लगे कि अतिथि की चापलूसी की जा रही है। परिचय संक्षिप्त और सारगर्भित होना चाहिए। परिचय लेते और देते समय अतिथि की उपाधि का सम्मान बढ़ाने वाले विशेषणों का प्रयोग किया जाना आवश्यक है; जैसे- डॉक्टर अग्निहोत्री, माननीय मंत्री महोदय, राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता – श्री रामचंद्र जी आदि। परिचय प्रशंसा के लिए हो, न कि खिल्ली उड़ाने या व्यंग्य करने के लिए। प्रशंसा अतिशयोक्तिपूर्ण भी न हो और शब्दों के प्रयोग में कंजूसी भी न की जाए।
परिचय औपचारिक और अनौपचारिक दोनों प्रकार का हो सकता है। आइए, इन्हें क्रमशः समझें :
1. औपचारिक परिचय :
आपके विद्यालय की वार्षिक पत्रिका के विमोचन के अवसर पर ‘दैनिक जागरण’ के प्रधान संपादक श्री विश्वेश्वर मिश्र पधारे हैं। उनका परिचय कार्यक्रम में उपस्थित लोगों को दीजिए। उनका विवरण निम्नलिखित है:
नाम : विश्वेश्वर मिश्र
मूल निवासी : लखनऊ (उ०प्र०)
व्यवसाय : पत्रकारिता
अनुभव : 24 वर्ष (ट्रिब्यून, दैनिक सहारा में उपसंपादक)
वर्तमान उपलब्धियाँ : साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत ‘हिंदी कविता-संग्रह’ लिखा है, जो हाल ही में प्रकाशित हुआ है।
पत्रिका के विमोचन के अवसर पर पधारे सज्जनो, अध्यापक बंधुओ और प्यारे विद्यार्थियो !
बड़े हर्ष और गौरव का विषय है कि ‘दैनिक जागरण’, नई दिल्ली के प्रधान संपादक और अग्रणी साहित्यकार श्री विश्वेश्वर मिश्र हमारे बीच पधारे हैं। आप साहित्य अकादमी द्वारा हाल में ही अपने काव्य-संग्रह के लिए सम्मानित किए गए हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी आपका 24 वर्ष का विलक्षण अनुभव है। आपका संबंध लखनऊ से है, किंतु अब तो वर्षों से हमारी दिल्ली के ही होकर रह गए हैं। आज के कार्यक्रम की अध्यक्षता करने और पत्रिका का विमोचन करने का हमारा अनुग्रह स्वीकार करके आपने हमें कृतार्थ किया है। विद्यालय प्रशासन और कार्यक्रम में उपस्थित सभी अतिथियों की ओर से मैं, रमेश गुप्ता, आपका हार्दिक अभिनंदन करता हूँ।
2. अनौपचारिक परिचय :
आइए मित्रो, आज आपका परिचय एक गज़ब के कलाकार से करवाता हूँ। इनका नाम सुरेंद्र मोहन पाटिल है। देखने में तो ये एक सामान्य से व्यक्ति लगते हैं, किंतु इनके भीतर छिपा है, एक महान चित्रकार और मूर्तिकार। बेजान पत्थर में जान डालनी हो, तो सुरेंद्र के हाथ में हथौड़ी और छेनी थमा दें। प्राकृतिक नजारों को चित्र में कैद करना हो, तो पेंट- ब्रुश थमा दें। गज़ब की कलादृष्टि है, इनकी। पढ़ें – लिखे ज़्यादा नहीं हैं, पर इन्होंने चित्रकारी और मूर्तिकारी में दैवी गुणवत्ता पाई है। हाल में ही इनकी एक पेंटिंग 26 हज़ार डॉलर में बिकी और राधा-कृष्ण की मूर्ति, जो इन्होंने तराशी थी, पेरिस के संग्रहालय में रखी गई है। इसी वर्ष इन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से भी नवाजा गया है। इनके व्यक्तित्व की सबसे बड़ी खूबी है, इनकी विनम्रता और मिलनसार स्वभाव। अपनी कमाई का एक हिस्सा ये गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए खर्च करते हैं। हमारे शहर का हर शख्स इनकी इज़्ज़त करता है।
3. अपरिचित को परिचय देना और परिचय प्राप्त करना :
किसी अपरिचित को परिचय देना या उसका परिचय प्राप्त करना भी एक कला है। अपरिचित व्यक्ति से संबंध बनाना और उससे उसके नाम – काम की जानकारी हासिल करना व्यवहार कुशलता का परिचायक है। ऐसा करते हुए विनम्रता और जिज्ञासा से पेश आना चाहिए। परिचय प्राप्त करते हुए उस व्यक्ति का नाम, पता और व्यवसाय की जानकारी लेनी चाहिए। अपरिचित से बातचीत करते हुए अपना व्यवहार संयमित रखना चाहिए और उसे अपना परिचय भी देना चाहिए।
उदाहरण :
हिमांशु मुंजाल अपने परिवार के साथ कालका से शिमला तक ट्रेन में यात्रा कर रहा है। यात्रा के दौरान साथ वाली सीट पर बैठे हुए सैलानी को अपना परिचय देते हुए उसका परिचय प्राप्त करता है।
- हिमांशु मुंजाल – हैलो!
- अपरिचित – (मुस्कराकर) हैलो!
- हिमांशु मुंजाल – मैं हिमांशु मुंजाल पानीपत से हूँ। अपने परिवार के साथ छुट्टियाँ बिताने शिमला जा रहा हूँ! आप भी शायद शिमला ही जा रहे हैं!
- अपरिचित – जी हाँ! मेरा नाम सुब्रह्मण्यम है! मैं मदुरै (तमिलनाडु) से हूँ। शिमला देखने की बड़ी इच्छा थी, सो आज जा रहा हूँ।
- हिमांशु – क्या अकेले ही जा रहे हैं?
- अपरिचित – नहीं। मेरे और दोस्त भी हैं, वे पहले डिब्बे में हैं। भीड़ बहुत थी, सो जहाँ सीट मिली बैठ गए।
- हिमांशु – आप मदुरै में क्या करते हैं?
- अपरिचित – मेरा सिल्क साड़ियों का कारोबार है। सारा परिवार इसी काम में लगा है। मैं सेल्स और मार्केटिंग देखता हूँ। आप क्या करते हैं?
- हिमांशु – मैं शिक्षक हूँ, पानीपत के आर्य स्कूल में हिंदी पढ़ाता हूँ।
- अपरिचित – बड़ी खुशी हुई, आपसे मिलकर। चलो, सफ़र लंबा है, अच्छा कट जाएगा।
- हिमांशु – मेरे मुँह की बात छीन ली, आपने। बड़ा मज़ा आएगा। लौटती बार पानीपत से होकर जाइएगा।
- अपरिचित – सॉरी, फिर कभी! हमें जल्दी से शिमला घूमकर दिल्ली पहुँचना है। आप मेरा कार्ड रख लें। कभी मदुरै आना हो, तो पधारिएगा।
- हिमांशु – ज़रूर! आपके बाकी मित्रों से भी अगले स्टेशन पर मिलूँगा।
अपना परिचय देना :
अपना परिचय देना भी बड़ा महत्वपूर्ण है। सामाजिकता की एक झलक व्यक्ति के व्यवहार में तब झलकती है, जब वह प्रभावी अंदाज़ में अपना परिचय दूसरों को देता है। ऐसा करते हुए व्यक्ति को बड़े आत्मविश्वास, संयम और सहजता से पेश आना चाहिए। परिचय पूर्ण होना चाहिए। नाम, पता, गोत्र, कक्षा, माता-पिता का नाम, व्यवसाय, विद्यालय का नाम आदि का उल्लेख अवश्य करना चाहिए। परिचय औपचारिक व अनौपचारिक दोनों रूपों में हो सकता है।
औपचारिक परिचय में शब्दावली व जानकारी सीमित और संयमित होनी चाहिए। विद्यालय, कक्षा, नाम, पिता का नाम जैसी जानकारियाँ काफ़ी रहती हैं। अनौपचारिक परचिय देते हुए पारिवारिक जानकारियाँ, व्यवसाय-संबंधी जानकारी या व्यक्तिगत जानकारी दी जा सकती है। जीवन-लक्ष्य की भावी योजनाओं संबंधी जानकारी विशेष लोगों को ही दी जा सकती है, हर किसी को नहीं।
उदाहरण :
आप एन०सी॰सी० कैंप में बरोटीवाला गए हैं। कैंप के प्रथम दिन आयोजित कैंप-फ़ॉयर में अपना परिचय दीजिए।
परिचय-मैं राज पटेल गांधी हाई स्कूल, कुरुक्षेत्र में 11 वीं कक्षा में पढ़ता हूँ। मेरे पिता जी सरकारी कर्मचारी हैं। मेरी माता जी मेरे विद्यालय में अंग्रेज़ी पढ़ाती हैं। मैं पहली बार एन०सी०सी० कैंप में भाग ले रहा हूँ। गायन और पेंटिंग मेरे शौक हैं। कैंप का माहौल मुझे बहुत अच्छा लग रहा है।
आप इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिले के लिए साक्षात्कार देने गए हैं। वहाँ साक्षात्कार बोर्ड के सामने अपना परिचय दीजिए।
परिचय-नमस्कार! मैं, राजकरण यादव, गाज़ियाबाद का निवासी हूँ। मैंने नॉन-मेडिकल विषय लेकर 12 वीं कक्षा की परीक्षा 86 प्रतिशत अंकों के साथ उत्तीर्ण की है। खेलों में भी मेरी गहरी रुचि है। बैडमिंटन में मैं राज्य-स्तरीय प्रतियोगिताओं में भाग ले चुका हूँ। मेरा लक्ष्य है- इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर बनकर देश और समाज की सेवा करना।
11 वीं कक्षा में दाखिले के बाद आप पहली बार राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला में गई हैं। कक्षा में अध्यापक को अपना परिचय दीजिए।
परिचय – मेरा नाम सुनीता जाटव है। मैं राजकीय कन्या उच्च विद्यालय, नगीना से पढ़ी हूँ। 10 वीं कक्षा मैंने प्रथम श्रेणी में 80 प्रतिशत अंक लेकर पास की है। हिंदी में मैंने 89 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हैं। मैं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेती रही हूँ।
आपको राज्य-स्तरीय समारोह में वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है। सभा में उपस्थित लोगों व अतिथियों को अपना परिचय दीजिए।
परिचय – मेरा नाम शुभांगी कौटिल्य है। मैं हिंदू कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, वाराणसी की 12 वीं कक्षा की छात्रा हूँ। मैं वाणिज्य विषय लेकर 12 वीं कर रही हूँ। मेरा लक्ष्य है-एम०बी०ए० करना और एक सफल मैनेजर बनना। मेरा मानना है कि लड़कियाँ लड़कों से किसी मामले में पीछे नहीं हैं। मैंने जूडो-कराटे सीखा है- आत्मा-रक्षा के लिए व दूसरी लड़कियों की सहायता के लिए। मुझे खुशी है कि मैंने दो लड़कियों को गुंडों के चंगुल से छुड़वाया। आज यह वीरता पुरस्कार पाते हुए मुझे गर्व का अनुभव हो रहा है।
9. धन्यवाद और कृतज्ञता ज्ञापन
धन्यवाद और कृतज्ञता – ज्ञापन के द्वारा सहायता करने वाले व्यक्तियों के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है। धन्यवाद की अपेक्षा कृतज्ञता – ज्ञापन अधिक भावपूर्ण एवं गंभीर होता है। धन्यवाद किए गए उपकार या सहायता पर प्रकट किया जाने वाला ऐसा भाव है, जो सहायता करने वाले को यह अहसास दिलाता है कि उसका प्रयास विफल नहीं गया। धन्यवाद या कृतज्ञता ज्ञापन उपकार का बदला, तो नहीं होता, परंतु उस उपकार के प्रति सहर्ष स्वीकृति और कृतार्थ होने के भाव का प्रकटीकरण अवश्य होता है। उपकार करने वाले को कृतज्ञता – ज्ञापन और धन्यवाद एक आत्मिक सुकून देते हैं। कृतज्ञता व्यक्त करते हुए शब्दों की कंजूसी नहीं करनी चाहिए। धन्यवाद और कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहे जाने वाले कुछ शब्द और वाक्य निम्नलिखित है
आपका हार्दिक धन्यवाद !
- मैं आपका ऋणी रहूँगा !
- मेरे पास आपका धन्यवाद करने के लिए शब्द नहीं हैं।
- मैं आपका उपकार आयुपर्यंत नहीं चुका सकता।
- आज मैं जो भी हूँ, आपके कारण हूँ।
- आपकी सामयिक मदद ने मुझे बचा लिया।
- मैं तहे दिल से आपका आभारी हूँ !
- इन मेहरबानियों को बनाए रखिएगा !
- मैं आपका यह अहसान कैसे चुकाऊँगा।
- अपनी इस मेहरबानी से आपने मुझे अपना मुरीद बना लिया।
- आपने मदद न की होती, तो मेरा क्या होता।
10. बधाई देना
बधाई देना भी सामाजिक व्यवहार का एक प्रभावी तरीका है। मित्रों-संबंधियों को उनकी उपलब्धियों और खुशियों के अवसर पर बधाई देना उनकी खुशियों, उपलब्धियों में शामिल होने के बराबर है। सामाजिकता का तकाजा है कि व्यक्ति जब कोई उपलब्धि हासिल करता है, तो उसे मित्रों, संबंधियों से बधाई की दरकार रहती है। बधाई देते समय यदि सटीक शब्दों का प्रयोग किया जाए, तो बड़ा अच्छा लगता है। उपयुक्त शब्दों के द्वारा बधाई देने वाले व्यक्ति व्यवहार कुशल कहलाते हैं।
बधाई देते समय खिले मुख से, मुस्कराते चेहरे से या स्मित आनन से बधाई देना सुनने वाले को भी भाता है। बधाई लेने वाला भावहीन ‘बधाई हो’ शब्द नहीं सुनना चाहता। वह चाहता है हृदय से निकले हुए शब्द जो उसे अहसास करवाते हैं कि सामने वाला मेरी खुशी में खुश है। गले लगाकर बधाई देना, पीठ थपथपाना, हाथ मिलाना या शब्दों से प्रशंसा करना बधाई देने के विविध तरीके हैं। मौखिक बधाई लिखित बधाई की तुलना में अधिक आत्मीय और प्रभावी होती है। टेलीफोन पर दी गई बधाई भी मिलकर बधाई देने से ज़्यादा प्रभावी और आनंददायक नहीं होती। कुछ बधाई संदेश निम्नलिखित वाक्यों द्वारा व्यक्त किए जा सकते हैं :
- परमात्मा आपकी खुशियों को दूना करे!
- इसी तरह हँसते – खिलखिलाते रहो, मेरे दोस्त !
- जन्म – दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !
- आप दीर्घायु हों, स्वस्थ रहें !
- आपकी इस उपलब्धि पर शत-शत बधाई !
- आपका विवाहित जीवन सुखमय और मंगलमय हो ! दीपावली की हार्दिक बधाई !
- गुरु- पर्व की मुबारकबाद !
- ईद की खुशियाँ पूरे वर्ष आपके जीवन में छाई रहें !
- सफलता आपके कदम चूमे ऐसी कामना करता हूँ !
- ऐसी खुशियों से ईश्वर आपका दामन भरता रहे!
- आपकी स्वर्णिम सफलता आपकी मेहनत का फल है। बधाई हो!
- सरकारी सेवा से बेदाग कार्यमुक्त होने पर हार्दिक बधाई !
- घर में नव-पुष्प के आगमन पर हार्दिक बधाई !
- जीवन के नए पड़ाव में पदार्पण के लिए बधाई !
- नया घर नई खुशियाँ लेकर आए, ऐसी मंगलकामना करता/करती हूँ !
- नववर्ष की हार्दिक बधाई !
11. संवेदना व्यक्त करना
संवेदना व्यक्त करने से पीड़ित व्यक्ति को सांत्वना मिलती है, उसका दुख बँट जाता है तथा मन हल्का हो जाता है। अतः संवेदना व्यक्त करते हुए बड़े उपयुक्त शब्दों और भावों का प्रयोग किया जाना चाहिए। मन से व्यक्त की गई संवेदना, जो दुखी के हृदय को शब्दों का मरहम लगाए, कारगर सिद्ध होती है। इसके लिए रोना-धोना और दिखावा काम नहीं करता, अपितु गंभीर हाव-भाव व मरहम लगाने वाले शब्दों की आवश्यकता होती है। दुख की गंभीरता को देखते हुए शब्दों व भावों का चयन करना चाहिए। कई बार ऐसे अवसरों पर पीड़ा शब्द बनकर स्वयं ही फूट पड़ती है। संवेदना व्यक्त करने के लिए निम्नलिखित वाक्यों का प्रयोग किया जा सकता है :
- भगवान आपको यह असह्य दुख सहने की शक्ति प्रदान करे !
- होनी को कौन टाल सकता है? धीरज धरो मित्र !
- ईश्वर की माया ईश्वर ही जाने, हम-आप तो माटी के पुतले हैं !
- होनी बड़ी बलवान है। हिम्मत रखिए, बहन जी !
- दुख की इस घड़ी में मैं आपके साथ हूँ।
- आपकी माता जी के असामयिक निधन पर मैं शोक संतप्त हूँ !
- आपके भाई की दुर्घटना में मृत्यु का समाचार सुनकर बड़ा सदमा पहुँचा है।
- यश- अपयश, जीवन-मरण सब विधि के हाथ हैं, पर मन को कौन समझाए।
- ईश्वर की शायद यही मर्जी थी। यहीं आकर हम सब हार जाते हैं।
- गया हुआ व्यक्ति लौटकर नहीं आता, अब धैर्य रखने के अलावा कोई चारा भी तो नहीं।
12. रेल, बस यात्रा संबंधी जानकारी प्राप्त करना
रेल – यात्रा संबंधी जानकारी प्राप्त करने के लिए सामान्यत: टेलीफोन का ही प्रयोग होता है। यात्रा – संबंधी विवरण देने वाले पूछताछ क्लर्क अकसर बड़े व्यस्त होते हैं। अतः कम-से-कम और सीधे-सादे शब्दों में यह जानकारी प्राप्त की जानी चाहिए। जानकारी फोन द्वारा प्राप्त करते समय पेन- कॉपी लेकर बैठना चाहिए। लिखित जानकारी लेने से बार-बार पूछने की आवश्यकता नहीं रहती और सारी स्थिति स्पष्ट भी हो जाती है। बातचीत करते हुए आत्मीय संबोधनों से संबंधित व्यक्ति को जीता जा सकता है और उससे आत्मीयता की आशा की जा सकती है। गाड़ी कब पहुँचेगी, कब छूटेगी, किस प्लेटफ़ॉर्म से चलेगी या छूट रही है, सीटों व शायिकाओं की जानकारी प्राप्त करना, प्रतीक्षा सूची की नवीनतम जानकारी कुछ ऐसे विषय हैं, जिनके विषय में रेलवे स्टेशन के पूछताछ कक्ष से जानकारी ली जा सकती है। इसके अलावा गाड़ी नंबर, यात्रा में लगने वाला समय, गाड़ी लेट होने या रद्द होने संबंधी जानकारी की दरकार यात्रियों को रहती है। इस जानकारी को प्राप्त करने के लिए विनम्र शब्दों व आत्मीय संबोधनों का प्रयोग किया जाना चाहिए। बसों से संबंधित जानकारी प्राप्त करते हुए भी इसी प्रकार संबोधन किया जाना चाहिए। बसों से संबंधित जानकारी बस अड्डे या क्षेत्रीय कार्यालय से प्राप्त की जा सकती है।
जानकारी प्राप्त करने का उदाहरण :
1. दिल्ली से कोयंबटूर जाने के लिए आप केरल एक्सप्रेस से ही यात्रा करना चाहते हैं। गाड़ी के प्रस्थान का समय, प्रथम श्रेणी का किराया और पहुँचने के समय की जानकारी के लिए क्लर्क से पूछताछ कीजिए।
- मनोहर – नमस्कार, भाई साहब! क्या आप रेलवे पूछताछ से बोल रहे हैं?
- पूछताछ क्लर्क – जी हाँ, रेलवे की पूछताछ – सेवा आपका स्वागत करती है।
- मनोहर – मुझे 13 सितंबर को केरल एक्सप्रेस से कोयंबटूर तक जाना है। कृपया गाड़ी के प्रस्थान का समय, कोयंबटूर पहुँचने का समय और दिल्ली से कोयंबटूर तक का प्रथम श्रेणी का किराया बता दें, तो अति कृपा होगी।
- पूछताछ क्लर्क – ऐसी कोई बात नहीं है, श्रीमान ! हम आपको जानकारी देने के लिए ही यहाँ उपस्थित हैं। केरल एक्सप्रेस का प्रस्थान समय 6.15 प्रातः है और कोयंबटूर पहुँचने का समय 9.20 प्रात: है। 13 सितंबर को चलकर यह गाड़ी 15 सितंबर को प्रातः 9.20 पर कोयंबटूर पहुँचेगी। प्रथम श्रेणी की उपलब्धता इस गाड़ी में नहीं है। आप चाहें तो द्वितीय वातानुकूलित शयनयान या तृतीय वातानुकूलित शयनयान में आरक्षण मिल सकता है।
- मनोहर – द्वितीय वातानुकूलित शयनयान का कोयंबटूर तक का किराया क्या होगा, भाई साहब?
- पूछताछ क्लर्क – लगभग 2400 रु० देने होंगे, श्रीमान !
- मनोहर – सूचना देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, भाई साहब !
- पूछताछ क्लर्क – धन्यवाद, श्रीमान !
2. आप सपरिवार वैष्णो देवी के दर्शनों के लिए जाना चाहते हैं। चंडीगढ़ से कटरा के लिए चलने वाली वातानुकूलित बस सेवा से संबंधित जानकारी के लिए अंतर्राज्यीय बस अड्डे में स्थित हरियाणा परिवहन निगम के पूछताछ कार्यालय से टेलीफोन पर जानकारी प्राप्त कीजिए।
- राजेश – हैलो! क्या यह हरियाणा परिवहन निगम का पूछताछ कार्यालय है?
- पूछताछकर्मी – जी हाँ, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ?
- राजेश – भाई साहब! आपकी वातानुकूलित बस-सेवा के द्वारा हमें चंडीगढ़ से कटरा जाना है। कृपया प्रस्थान का समय और किराया बता दीजिए।
- पूछताछकर्मी – क्षमा कीजिएगा, अब अगली वातानुकूलित बस शाम 6 बजे से पहले नहीं चलेगी। चंडीगढ़ से कटरा तक का किराया 375 रुपये है। टिकट बस चलने से एक घंटा पहले मिलेगा।
- राजेश – बस छह बजे शाम को चलकर कटरा कब पहुँचेगी, ज़नाब?
- पूछताछकर्मी – अगले दिन प्रात: 5 बजे कटरा पहुँच जाएगी, साहब!
- राजेश – इसके बाद भी कोई समय है, वातानुकूलित बसों के लिए?
- पूछताछकर्मी – जी हाँ, रात 10 बजे एक और वातानुकूलित बस चलती है, जो अगली सुबह $10.30$ बजे कटरा पहुँचती है।
- राजेश – जानकारी के लिए धन्यवाद, भाई साहब!
- पूछताछकर्मी – यह तो हमारी ड्यूटी है साहब, धन्यवाद!
13. साक्षात्कार देना
साक्षात्कार का वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बड़ा महत्व है। नौकरी के लिए साक्षात्कार तो देना ही होता है। उच्चतर कक्षाओं में दाखिले के लिए और व्यावसायिक कॉलेजों में प्रवेश के लिए भी विद्यार्थियों को साक्षात्कार की कसौटी पर खरा उतरना होता है। साक्षात्कार के माध्यम से साक्षात्कार लेने वाले अधिकारी विद्यार्थी के ज्ञान, सामान्य बौद्धिकता और विषय – विशेष के ज्ञान को परखते हैं। इस अवसर पर विद्यार्थी या अभ्यार्थी का व्यक्तित्व भी जाँचा – परखा जाता है। साक्षात्कार में स्वयं प्रस्तुत करते हुए निम्नलिखित पक्षों का ध्यान रखा जाना आवश्यक को
1. साक्षात्कार में जाने के लिए सहज होकर जाएँ और किसी भी प्रकार की घबराहट को पास न फटकने दें।
2. तनावग्रस्त चेहरा और घबराहट अकसर विद्यार्थी की प्रस्तुति को ग्रहण लगा देते हैं, अतः आत्म-विश्वास व सहज भाव से साक्षात्कारमंडल का सामना करना चाहिए।
3. विद्यार्थी देखने में प्रभावी व सुसभ्य दिखाई दें, इसके लिए उचित वेश-भूषा का चयन किया जाना चाहिए। तड़क-भड़क वाले कपड़े या ज़्यादा फ़ैशन – परस्त दिखने की चाह अकसर विपरीत प्रभाव डालती है।
4. पूछे गए प्रश्नों के उत्तर सटीक व विषय के अनुरूप हों। दिग्भ्रमित करने वाली या बढ़ा-चढ़ाकर कही गई बातें साक्षात्कार लेने वाले को अकसर नाराज़ कर देती हैं।
5. यदि किसी प्रश्न का उत्तर ज्ञात न हो, तो अनाप-शनाप उत्तर देने की अपेक्षा विनम्रता से इंकार कर देना श्रेयस्कर है। साफ़गोई अभ्यर्थी के पक्ष में जाती है और चालाकी अंक कटने का कारण बनती है।
6. साक्षात्कार देने वाले की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह अपनी तर्कशीलता से साक्षात्कारकर्ता का मन जीत पाता है या नहीं। अतः उत्तर ऐसे हों, जो साक्षात्कारमंडल को प्रभावित कर सकें।
7. एक अच्छा और सिद्धहस्त साक्षात्कार देने वाला उस अभ्यर्थी या विद्यार्थी को माना जाता है, जो अपनी लीक पर साक्षात्कारकर्ताओं को लेकर चलता है। उसके उत्तर इस प्रकार से होते हैं, जिनसे साक्षात्कारमंडल साक्षात्कार देने वाले से मनचाहे प्रश्न पूछते हैं। अपनी लीक पर चलाने की कला में अभ्यर्थी को सिद्धहस्त होना सीखना चाहिए।
8. साक्षात्कार पर जाने से पहले अभ्यर्थी को संभावित प्रश्नों व उनके उत्तरों का अच्छी तरह से अभ्यास कर लेना चाहिए। अकसर संभावित प्रश्न ही पूछे जाते हैं।
9. अभ्यर्थी की भाषा साक्षात्कार लेने वालों के अनुरूप हो। यदि वे हिंदी में प्रश्न करें, तो उत्तर भी हिंदी में ही दिए जाएँ, यदि प्रश्न अंग्रेज़ी में हो, तो अंग्रेज़ी में उत्तर देने का प्रयास किया जाना चाहिए।
10. साक्षात्कार का अभिप्राय होता है- अभ्यर्थी के विषयगत ज्ञान, सामान्य ज्ञान, व्यक्तित्व व संपूर्ण अस्तित्व का सूक्ष्म मूल्यांकन। अतः हर विद्यार्थी / अभ्यर्थी को पूरी तैयारी के साथ साक्षात्कार के लिए स्वयं को प्रस्तुत करना चाहिए।
11. संबोधन के उचित प्रयोग और सामान्य व्यवहार में वांछित अनिवार्यताओं का मूल्यांकन भी साक्षात्कार की विषय-वस्तु होता है। अतः विद्यार्थी / अभ्यर्थी को इस दिशा में भी ध्यान देना चाहिए।
12. साक्षात्कार कक्ष में उपस्थित होते समय विद्यार्थी / अभ्यर्थी मुख्य साक्षात्कारकर्ता की ओर देखते हुए- ‘क्या मैं अंदर आ सकता हूँ, श्रीमान ?’ कहकर अनुमति पाने की प्रतीक्षा करनी चाहिए।
13. अनुमति मिलने के उपरांत संतुलित कदमों से आगे बढ़ते हुए अभ्यर्थी को साक्षात्कारकर्ताओं के ठीक सामने आकर खड़ा होना चाहिए और उनके ‘बैठिए’ कहने पर स्थान – ग्रहण करना चाहिए। बैठने से पहले उसे सभी साक्षात्कारकर्ताओं की ओर देखते हुए ‘नमस्कार’ कहना चाहिए। कई बार अभिवादन करते समय शब्दों का स्थान हाव-भाव भी ले लेते हैं।
14. साक्षात्कार के दौरान प्रस्तुत किए जाने वाले प्रमाण-पत्र व कागज़ क्रमबद्ध तरीके से रखे जाने चाहिए और साक्षात्कारकर्ताओं के माँगने पर बारी-बारी से प्रस्तुत किए जाने चाहिए।
15. शरीर की भाव-भंगिमा और व्यक्ति की भाषा उसके व्यक्तित्व व मनःस्थिति की कहानी कह देती है, अतः सजग होकर, शरीर को व्यवस्थित करके बैठना श्रेयस्कर है।
16. कुछ ज़्यादा ही कर दिखाने की ललक कई बार साक्षात्कारकर्ताओं के चिढ़ने का कारण बन जाती है। अतः जो पूछा जाए उसी का उत्तर देना चाहिए।
17. पूछे गए प्रश्नों के उत्तर साक्षात्कारकर्ताओं की आँखों में देखते हुए विनम्रता व हल्की मुस्कराहट के साथ देना साक्षात्कार को प्रभावी बनाता है।
18. मेरा मानना है कि : ……….. मेरा विचार है कि ………. मैं समझता हूँ कि मेरी दृष्टि में ………. मेरी बात जैसे संबोधन वाक्य ज़्यादा उपयुक्त जान पड़ते हैं। ताल ठोंककर कहना; जैसे- ‘हाँ जी, ऐसा ही है बिलकुल ठीक है जो ……..।’ साक्षात्कार के दौरान विपरीत प्रभाव डालता है।
19. तर्कों में विनम्रता झलके, इसका प्रयास साक्षात्कार देने वालों को करना चाहिए।
20. प्रयास करें कि साक्षात्कारकर्ता की बात को काटे बिना ही अपना तर्क प्रस्तुत किया जाए।
21. जब जाने के लिए कहा जाए, तो मुस्कराकर सभी साक्षात्कारकर्ताओं को धन्यवाद देना चाहिए। इसके उपरांत अपनी
फ़ाइल को सँभालते हुए संयमित कदमों से बाहर की ओर प्रस्थान करना चाहिए।
साक्षात्कार देने का उदाहरण :
आपका नाम सोहराब अरोड़ा है। बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात आप राजकीय महाविद्यालय में बी०कॉम० भाग-I में दाखिले के लिए साक्षात्कार दे रहे हैं। साक्षात्कारमंडल में प्राचार्य और दो वरिष्ठ प्राध्यापक श्रीयुत धर्मेंद्र शर्मा और श्याम सुंदर भागवत जी हैं। उनके मध्य हुए साक्षात्कार का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- सोहराब अरोड़ा – क्या मैं अंदर आ सकता हूँ, श्रीमान ?
- प्राचार्य – आइए !
- सोहराब अरोड़ा – (तीनों की तरफ़ देखते हुए) नमस्कार, श्रीमान !
- प्राचार्य – बैठो बेटे!
- सोहराब अरोड़ा – धन्यवाद, श्रीमान !
- श्याम सुंदर – सबसे पहले अपना परिचय दीजिए।
- सोहराब अरोड़ा – जी! मेरा नाम सोहराब अरोड़ा है। मैंने महर्षि विद्या मंदिर, पीलीभीत से बारहवीं कक्षा 76 प्रतिशत अंक लेकर उत्तीर्ण की है। अब मैं बी०कॉम० करना चाहता हूँ।
- धर्मेंद्र – तुम बी०कॉम० ही क्यों करना चाहते हो, सोहराब ?
- सोहराब अरोड़ा – यह मेरा शुरू से ही सपना है, श्रीमान ! मैं एक सफल मैनेजर बनना चाहता हूँ।
- प्राचार्य – क्या बी०कॉम० करके ही मैनेजर बन जाओगे?
- सोहराब अरोड़ा – मान्यवर, बी०कॉम० के बाद मेरा विचार एम०बी०ए० करने का है। उसके बाद मैं इस लक्ष्य को पाने की कोशिश करूँगा।
- श्याम सुंदर – तुम्हारी रुचि किस विषय में अधिक है और क्यों ?
- सोहराब अरोड़ा – मुझे अर्थशास्त्र पढ़ना बहुत अच्छा लगता है, श्रीमान ! अर्थशास्त्र अर्थनीति को लेकर चलता है और इसके निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए मैं अर्थशास्त्र को अपना प्रिय विषय मानता हूँ।
- प्राचार्य – अच्छा सोहराब! क्या खेल-कूद में भी कुछ रुचि रखते हो?
- सोहराब अरोड़ा – जी, श्रीमान ! मैं अपने विद्यालय की फुटबॉल टीम का कप्तान था। ये मेरे प्रमाण-पत्र देखिए-(प्रमाण-पत्र दिखाता है।)
- धर्मेंद्र – हमारे महाविद्यालय में सांस्कृतिक-साहित्यिक गतिविधियाँ भी काफ़ी चलती हैं। क्या तुम्हारी रुचि इन गतिविधियों में भी है?
- सोहराब अरोड़ा – मैं कविता-पाठ और भाषण प्रतियोगिता में भाग ले चुका हूँ। यहाँ भी प्रयास अवश्य करूँगा, श्रीमान!
- प्राचार्य – ठीक है, सोहराब! तुम बी०कॉम० भाग-I के लिए चुन लिए गए हो। जाकर कार्यालय में अपनी फीस जमा कर दो।
- सोहराब अरोड़ा – (तीनों की ओर कृतज्ञता से देखते हुए) धन्यवाद, श्रीमान! बहुत-बहुत धन्यवाद!
14. साक्षात्कार लेना
साक्षात्कार लेते समय साक्षात्कारकर्ताओं का लक्ष्य अभ्यर्थी के भीतर छिपी योग्यता को परखना होना चाहिए, न कि उसे उखाड़ने का लक्ष्य लेकर साक्षात्कार लेना चाहिए। साक्षात्कारकर्ता को साक्षात्कार देने वाले के संपूर्ण व्यक्तित्व को जाँचना – प. रखना होता है। नौकरी या अपेक्षित कोर्स में दाखिले के संदर्भ में उसे शैक्षणिक योग्यता के साथ-साथ व्यक्तित्व के गुणों और सामान्य ज्ञान की भी झलक देखनी होती है। चारित्रिक गुणों; जैसे- मानवीयता, विनम्रता, आदरभाव, व्यवहार कुशलता का आकलन भी साक्षात्कारकर्ताओं को करना होता है। इसके लिए कई बार प्रश्न पूछे बिना ही आभास हो जाता है। पहनावे और हाव-भाव से भी अभ्यर्थी के जीवन-दर्शन को आँक लिया जाना चाहिए। साक्षात्कारकर्ताओं को साक्षात्कार लेते हुए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए :
- प्रश्न ज्ञान और सामान्य ज्ञान को परखने के लिए हों, अभ्यर्थी में घबराहट उत्पन्न करने के लिए नहीं।
- प्रश्न विविध विषयों पर हों और सार्थक हों।
- प्रश्नों को सीधे – सीधे रखा जाए, न कि घुमा-फिराकर।
- साक्षात्कार लेते समय अधिक गंभीरता अभ्यर्थी को आक्रांत कर देती है। अतः साक्षात्कारकर्ताओं को सहज व अच्छी मन:स्थिति में रहना चाहिए।
- साक्षात्कारकर्ता असंतुष्ट होने की स्थिति में अपनी नाराजगी जाहिर न करें, अपितु विषयांतर करके अभ्यर्थी को सँभलने का मौका भी दें।
- अभ्यर्थी के तर्कों व उत्तरों को ध्यानपूर्वक सुनना साक्षात्कार लेने वालों के लिए अनिवार्य है। अनसुना कर देने की प्रवृत्ति से सुपात्रों के चयन में कठिनाई आती है।
- साक्षात्कार के अंत में अभ्यर्थी को आशावादिता का संदेश देने के लिए साक्षात्कार लेने वालों को सकारात्मक रुख दिखाना चाहिए; जैसे- ठीक है, रमेश जी ! धन्यवाद !
निर्देश – साक्षात्कार देने और साक्षात्कार लेने में अन्योन्याश्रित संबंध है। अतः इसके उदाहरण के लिए साक्षात्कार देने का उदाहरण (पेज सं० – 464 – 466) देखें।